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________________ उसकी तृष्णा जीर्ण नहीं होती। अतः तपाराधन का देह पर जो प्रभाव पड़ता है, वह यह कि सांसारिक काम भोगों, विषय-कषायों तथा इच्छाओं को पूरी करने व भोगने का सबल सामर्थ्य ही इस देह में नहीं बचता और आत्मा पर उसका जो प्रभाव पड़ता है, वह अप्रतिम होता है। आत्मानुशासन ऐसा कठोर हो जाता है कि मन, इन्द्रियाँ और देह उससे रंच मात्र भी बाहर नहीं • निकल सकती हैं और तपस्वी आत्मा सदा धर्म और शुक्ल ध्यान में निमग्न रहती है। इस प्रकार देह शुद्धि से आत्मशुद्धि तक की प्रक्रिया तपश्चरण से सफल बनती है। यहाँ मैं एक तथ्य पर और विचार कर लेना चाहता हूँ और वह तथ्य है आत्मा एवं देह का पृथकत्व । अधिकांश लोगों की सामान्य समझ यही होती है कि आत्मा और देह में कोई भेद नहीं है। जीवन है जब तक ये हैं और जीवन के साथ ही सब कुछ नष्ट हो जाता है। यह भी माना जाता है कि आत्मा कुछ नहीं होती, यह देह पंच भूत से बनती है तथा मृत्यु के उपरान्त वे ही पंच भूत पंच भूतों में मिल जाते हैं। इस प्रकार आत्मा की अनश्वरता एवं निरन्तरता तथा देह की नश्वरता के बिन्दु सामान्य समझ में स्पष्ट नहीं होते हैं। यों तो चेतन व जड़ का संयोग ही सांसारिकता का मूल कारण है तथा दोनों के सर्वथा सम्बन्ध विच्छेद का नाम ही मोक्ष । किन्तु जीवनों की क्रमिकता एवं निरन्तरता आत्मा एवं देह की पृथकता पर टिकी हुई है। आत्मा अलग और देह अलग है। एक जीवन की समाप्ति पर वह देह नष्ट हो जाती है किन्तु आत्मा नया जीवन धारण करके नई देह अपना लेती है। यह सब उसके कर्म चक्र के अनुसार घटित होता है। मैं समझता हूँ कि आत्मा और देह के अलगाव की बात सामान्य समझ में ठीक तरह से बैठ जाय, उसके लिये परदेशी राजा और केशी श्रमण के प्रश्नोत्तर बहुत उपयोगी हो सकते हैं। परदेशी राजा आत्मा और देह की पृथकता को नहीं मानता था और इस विश्वास के कारण वह घोर हिंसामय पाप कार्यों में लगा रहता था। एक बार महान साधक केशीश्रमण बाहर के उद्यान में ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए पधारे। राजा का सारथी चित्त अपने राजा को धर्म पथ पर मोड़ने को था अतः नये घोड़ों की चाल दिखाने के बहाने वह परदेशी को उद्यान में केशीश्रमण के पास ले चला गया। प्रवचन पर्षदा को देख कर राजा परदेशी की जिज्ञासा जगी और उसने केशीश्रमण से अपने प्रश्न किये तथा केशीश्रमण ने उनके उत्तर दिये, वे इस प्रकार के आशय के थे : (१) राजा–आत्मा और देह पृथक्-पृथक् हैं—मुझे यह मान्यता असत्य लगती है। प्रमाण देता हूँ। मेरे दादा महाराजा भी दिन रात पाप कर्म में लिप्त रहते थे, लेकिन मुझे वे बहुत ही प्यार करते थे। आप के अनुसार वे नरक में होंगे तो क्या वे मुझे आकर सावधान नहीं बनाते कि पाप मत करो, नरक में भीषण यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं। वे नहीं आये है इसलिए मेरी मान्यता सत्य है। केशीश्रमण–अगर तुम अपनी पटरानी सूरिकान्ता के साथ किसी अन्य विलासी पुरुष को सांसारिक भोग भोगते देख लो तो उसे क्या दण्ड दोगे? ___ राजा—मैं बिना एक क्षण की भी देरी किये एक ही बार में उसके प्राण ले लूंगा। केशी-अगर वह पुरुष कहे कि थोड़ी देर ठहर जाओ—मैं अपने सम्बन्धियों को बता कर वापस आता हूँ कि दुराचार का फल ऐसा होता है। तो क्या तुम थोड़ी देर के लिये उसे छोड़ दोगे? राजा ऐसे अपराधी को दण्डित करने में मैं तनिक भी देर नहीं रूकुँगा। ३१८
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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