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________________ (५) राजा–धनुर्विद्या जानने वाला तरुण पुरुष एक साथ पांच बाण फैंक सकता है, लेकिन उसकी ऐसी होशियारी उसके बचपन में नहीं होती। शरीर वृद्धि के साथ ही होशियारी आती है जिससे साफ है कि आत्मा और देह एक होते हैं। केशी.-वह तरुण पुरुष नया धनष और नई डोरी लेकर ही पांच बाण एक साथ बैंक सकता है—पुराने धनुष व पुरानी डोरी से नहीं। यह उपकरण का प्रभाव है। वैसे ही बचपन में . धनष की शिक्षा रूप उपकरण का अभाव होने से एक बालक वैसा नहीं कर सकता है। यह उपकरण के अभाव का प्रभाव है। राजा—एक तरुण पुरुष लोहे, सीसे या जस्ते के बड़े भार को उठा सकता है, लेकिन वही बूढ़ा हो जाने पर भार उठाना तो दूर-खुद भी लकड़ी के सहारे चलने लगता है। यदि आत्मा और देह पृथक होते तो वह बुढ़ापे में भी भार उठाने में समर्थ रहता। केशी.—इतने बड़े भार (कावड़) को तरुण पुरुष ही उठा सकता है लेकिन उसके पास भी बांस फटा व कपड़ा गला हुआ हो तो क्या वह उस कावड़ को उठा सकेगा? उसी प्रकार शारीरिक साधन की दुर्बलता से वृद्ध पुरुष वह भार नहीं उठा पाता है। इसमें आत्मा व देह के एक होने का कोई प्रश्न नहीं है। (६) राजा-मैंने एक चोर को जिंदा हालत में तोला और मारने के बाद फिर तोला, लेकिन वजन में कोई फर्क नहीं आया। अगर आत्मा नाम की कोई वस्तु होती और वह निकलती तो उसके वजन की तो कमी होनी चाहिये थी। केशी.-चमड़े की मशक में हवा भर कर तोलो और फिर हवा निकाल कर तोलो क्या वजन में फर्क पड़ेगा? राजा नहीं। केशी.-आत्मा तो हवा से भी सूक्ष्म होती है क्योंकि हवा गुरु-लघु है लेकिन आत्मा अगुरु-लघु है। अतः यह प्रमाण भी व्यर्थ है। राजा–आत्मा है या नहीं यह देखने के लिये मैंने एक चोर को चारों ओर से जांचा-पड़ताला, कहीं आत्मा नहीं दिखी। उसके छोटे-छोटे टुकड़े करवा दिये तब भी कहीं आत्मा नहीं दिखी। इसलिये आत्मा नाम की कोई वस्तु नहीं है। केशी.-तुम तो उस लकड़हारे के समान मूर्ख हो जो लकड़ी के टुकड़े-टुकड़े करके उसमें आग खोजा करता है और आग न मिलने पर निराश हो जाता है। आत्मा देह के किसी खास अवयव में नहीं रहती बल्कि सम्पूर्ण देह में व्याप्त होती है। देह की प्रत्येक क्रिया उसी के कारण होती है। अतः आत्मा और देह की पृथकता स्वयंसिद्ध है। ___ इस प्रकार उपरोक्त प्रश्नोत्तर सरल एवं सुबोध शैली में आत्मा तथा देह की पृथकता को समझा देते हैं जो सामान्य समझ में भी भलीभांति बैठ सकता है। ___ मैं मानता हूँ कि आत्मा एवं देह की पृथकता का यह बिंदु तपाराधन की आधार भित्ति है, क्योंकि मुख्य रूप से तप के दो प्रकार कहे गये हैं—बाह्य एवं आभ्यन्तर | बाह्य तप के छ: भेद हैं तथा आभ्यन्तर तप के भी छः भेद है, जो कुल मिलाकर बारह भेद होते हैं। बाह्य तप का अभिप्राय ३२०
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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