SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२) श्रुत सामायिक-गुरु के समीप में सूत्र, अर्थ या इन दोनों का विनयादि पूर्वक अध्ययन करना श्रुत सामायिक है। (३) देशविरति सामायिक-श्रावक का अणुव्रत आदि रूप एक देश विषयक चारित्र देश विरति सामायिक है। (४) सर्व विरति सामायिक–साधु का पंच महाव्रत रूप सर्व चारित्र सर्व विरति सामायिक श्रावक के बारह अणुव्रतों में से चार शिक्षा व्रत हैं और उनमें पहला व्रत सामायिक व्रत है। यह सामायिक व्रत दो घड़ी याने एक मुहूर्त याने अड़तालीस मिनिट का होता है। इस काल में सावध (हिंसापूर्ण) व्यापार का त्याग कर आर्त व रौद्र ध्यानों से दूर होकर समभाव में आत्मा को लगाना होता है। सामायिक में बत्तीस दोषों की भी वर्जना करनी चाहिये। सामायिक की यह कालावधि समभाव की साधना तथा योग व्यापार की शुभता का किस प्रकार अभ्यास कराती है—यह इसमें टालने लायक बत्तीस दोषों -मन के दस, वचन के दस तथा काया के बारह —की परिभाषा से स्पष्ट हो जाता है। मन के जिन संकल्पों से सामायिक दूषित हो जाती है, वे मन के दोष कहलाते हैं। इन्हें टालने से ही सामायिक की शुद्धता बनती है। ये दोष इस प्रकार हैं—(१) अविवेक औचित्य—अनौचित्य अथवा समय-असमय का ध्यान नहीं रखना (२) यशः कीर्ति यश, प्रतिष्ठा अथवा आदर पाने की कामना करना (३) लाभार्थ-व्यापार बढ़ने या धन आदि के लाभ की इच्छा रखना (४) गर्व–अपनी सामायिक के सम्बन्ध में अभिमान करना (५) भयराज्य, पंच, लेनदार आदि से बचने के लिये भयपूर्वक सामायिक में बैठ जाना (६) निदान–सामायिक के बदले भौतिक फल की अभिलाषा करना (७) संशय-सामायिक के आध्यात्मिक फल के बारे में सन्देह करना (८) रोष-रोग द्वेष आदि के कारण सामायिक में क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषाय का सेवन करना (६) अविनय –सामायिक के प्रति अविनय का भाव रखना तथा (१०) अबहुमान–सामायिक के प्रति वांछित आदर भाव नहीं रखना। ये दसों दोष मन के योग व्यापार के माध्यम से लगते हैं। इन दस दोषों से बचने पर ही सामायिक के लिये मन शुद्धि होती है तथा एकाग्रता आती है। सामायिक में सामायिक को दूषित करने वाले सावध वचन बोलना वचन के दोष कहलाते हैं। वे दस हैं—(१) कुवचन-कुत्सित वचन बोलना (२) सहसाकार - विचार हीनता एवं अप्रतीति से बोलना (३) शच्छन्द -धर्मविरुद्ध राग द्वेष की वृद्धि करने वाले गीत गाना (४) संक्षेप-सामायिक के पाठ या वाक्य को छोटा करके बोलना (५) कलह -क्लेश उत्त्पन्न करने वाले वचन बोलना (६) विकथा -स्त्री कथा आदि चार (स्त्री, देश, राज, भक्त) विकथा करना (७) हास्य-हंसना, कौतूहल करना या व्यंग अथवा आक्षेप वाले शब्द बोलना (८) अशुद्ध –सामायिक के पाठ जल्दी-जल्दी अशुद्धियों सहित बोलना (६) निरपेक्ष बिना उपयोग या सावधानी के बोलना तथा (१०) मुणमुण–अस्पष्ट उच्चारण करना। इन दस दोषों से बचने के बाद ही वचन शुद्धि बनती है। सामायिक में निषिद्ध आसन से बैठना काया का दोष है। इसके बारह भेद हैं –(१) कुआसन मानपूर्ण या अशुद्ध आसन से बैठना (२) चलासन बारबार आसन बदलना। (३) चल दृष्टि-बिना प्रयोजन इधर उधर देखना (४) सावध क्रिया-शरीर से हिंसापूर्ण क्रिया करना। घर की २४७
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy