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________________ अगर समता मात्र आंखें लगा दी जाय तो विषय-कषाय की विकृति के घटती रहने से धीरे-२ जागृति का वातावरण बन सकती है और मानवीय मूल्यों का महत्त्व पुनः बढ़ सकता है। मैं यह तो मानता ही हूं कि किसी भी प्रकार के संशोधन, परिमार्जन या परिवर्तन का श्री गणेश व्यक्ति के जीवन से ही किया जा सकता है। अतः यदि मानवीय मूल्यों की पुनः सुदृढ़ता से स्थापना करनी है तो आज के वातावरण की प्रलुब्धता को घटाकर व्यक्ति को अपने योग व्यापार में शुभ परिवर्तन लाना ही होगा। किसी भी शुभ कार्य का अंकुर पहले मन में ही फूट सकता है क्योंकि मन का निश्चय ही कार्य की सफलता में परिणत होता है। इसलिये मनुष्य का मन शुभ योग व्यापार में कैसे सधे-उसके आध्यात्मिक उपायों पर गहराई से चिन्तन करना आवश्यक है। सामाजिक से समभाव की साधना अशुभ योग व्यापार को शुभता में ढालने का एक मात्र उपाय यही हो सकता है कि मैं पहले अपने मन को साधूं—उसमें समभाव का संचार करूं। कहा गया है कि जैसे- जैसे मन, वचन, काया के योग अल्पतर और मन्दतर होते जाते हैं, वैसे वैसे कर्म बंध भी अल्पतर होता जाता है। कषाय के अपगत होने पर योग चक्र का पूर्णतः निरोध होने पर आत्मा में बंध का सर्वथा अभाव हो जाता है जैसे कि समुद्र में रहे हुए अच्छिद्र जलयान में जलागमन का अभाव होता है। _मैं समझता हूं कि योग चक्र का पूर्णतः निरोध मेरे लिये आदर्श है, जिसकी प्राप्ति मैं विभिन्न चरणों में ही कर सकूँगा। मेरा पहला चरण यह होना चाहिये कि अपने योग व्यापार की वर्तमान अशभता की मैं कडी आलोचना करूं और उसे शभता में परिवर्तित करने का संकल्प बनाऊं। सबसे पहले मुझे अपने योग चक्र का रूपान्तरण करना होगा, क्यों कि मन, वचन, काया के तीनों योग अविवेकी और अयुक्त पुरुष के लिये दोष के हेतु बनते हैं तो वे ही तीनों योग विवेकी और युक्त पुरुष के लिये गुण के हेतु होते हैं। अतः इन योगों को मैं गुण के हेतु बनाने के लिये मन की साधना आरंभ करूंगा, उसे समभावों से परिपूरित बनाने का पुरुषार्थ बताऊंगा तथा मन से आरंभ करके त्रिविध योग व्यापार का सम्यक् संशोधन करूंगा। समभाविता के इस लक्ष्य का अभ्यास मैं प्रारंभ करूंगा सामायिक की साधना से। यह सामायिक क्या है? सम का अर्थ है जो व्यक्ति राग द्वेष से रहित होकर सर्व प्राणियों को आत्मवत्-समझता है, सम्यक् ज्ञान दर्शन और चारित्र की प्राप्ति होना सामायिक है । सामायिक में सर्व सावध-हिंसापूर्ण व्यापारों का त्याग करना और निखध अहिंसक व्यापारों में प्रवृत्ति करना होता है ताकि राग द्वेष की मलिन भावनाओं से मुक्त हुआ जा सके। जितना राग द्वेष मिटेगा, उतना ही सम-भाव जगेगा। सम अर्थात् रागद्वेष रहित पुरुष की प्रतिक्षण कर्म निर्जरा से होने वाली अपूर्व शद्धि सामायिक है। सम अर्थात ज्ञान, दर्शन, चारित्र की प्राप्ति सामायिक है। मैं सामायिक के निम्न चार प्रकारों पर चिन्तन करता हूं तो समझ में आता है कि सामायिक का महात्म्य अवर्णनीय है, क्योंकि समभाव के आरंभिक अभ्यास के रूप से विकसित होकर यही सामायिक सर्व विरति रूप विराट् स्वरूप ग्रहण कर लेती है (१) सम्यक्त्व सामायिक–देव नारकी की तरह निसर्ग अर्थात् स्वभाव से होने वाला तथा अधिगम अर्थात् तीर्थंकर आदि के समीप धर्म श्रवण से होने वाला तत्त्व श्रद्धान सम्यक्त्व सामायिक है। २४६
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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