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________________ (२) अविशुद्ध भाव लेश्या कलुषित द्रव्य लेश्या के सम्बन्ध होने पर राग द्वेष विषयक आत्मा के अशुभ परिणाम अविशुद्ध भाव लेश्या है। इन्हीं के आधार पर छः द्रव्य लेश्याएं हैं जिनमें से अन्तिम तीन विशुद्ध तो पहले की तीन अविशुद्ध भाव लेश्या समझी जाती हैं। ___म लेश्याओं के दर्पण में सदा अपने मन को देखता रहूं तो उसकी प्रतिक्षण होने वाली गतिविधियां मुझसे छिपी हुई नहीं रह सकेगी और उस जानकारी के अनुसार मैं अपने मन पर प्रतिक्षण नियंत्रण साध सकूँगा। मन को पर्याप्त सीमा तक साध लेने पर मैं अपने मन, वचन तथा काया के सम्पूर्ण योग व्यापार पर अपना नियंत्रण स्थापित कर सकूँगा। त्रिविध योग व्यापार योग याने परिणाम अर्थात् भाव रूप व्यापार याने क्रियाएं तीन माध्यमों से संचालित होती हैं। सबसे पहला और बड़ा माध्यम होता है मेरा मन, जहाँ किसी भी वृत्ति का जन्म होता है। मन ही उस वृत्ति को पालता, पोषता और परिपक्व बनाता है। वही वृत्ति वचन बनकर तब मुंह से बाहर प्रकट होती है और तदनन्तर काया से जुड़ कर कार्य रूप में परिणत होती है। वृत्ति से वाणी, वाणी से प्रवृत्ति तथा प्रवृत्ति से विभिन्न वचनों और नई-नई वृत्तियों का अभ्युदय —इस प्रकार का त्रिविध योग व्यापार इस जीवन में चलता ही रहता है। मूल में मन शुभ होता है तो वृत्ति शुभ ढलती है और वही शुभता वाणी और प्रवृत्ति में भी बनी रहती है। योग व्यापार की इस शुभाशुभता का दार्शनिक रहस्य मैं जानना चाहता हूं। __योग क्या है? वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम या क्षय होने पर मन, वचन, काया के निमित्त से आत्म प्रदेशों के चंचल होने को योग कहते हैं अथवा यों कह दें कि शक्ति विशेष से होने वाले साभिप्राय आत्मा के पराक्रम को योग कहते हैं। योग एक शक्ति रूप है, जिस का शुभ अथवा अशुभ अभिप्राय के लिये मन, वचन तथा काया के माध्यम से प्रयोग किया जा सकता है। इस रूप में योग एक शक्ति अथवा पराक्रम का रूपक होता है। यह योग तीन प्रकार का होता है: - (१) मनोयोग—आन्तरिक मनोलब्धि होने पर मनोवर्गणा के आलंबन से मन के परिणाम की ओर झुके हुए आत्म प्रदेशों का जो व्यापार होता है, उसे मनोयोग कहते हैं। ऐसी मनोलब्धि नोइन्द्रिय मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम के परिणाम स्वरूप प्राप्त होती है। (२) वचन योग-आन्तरिक वाक् लब्धि उत्पन्न होने पर वचन वर्गणा के आलम्बन से भाषा परिणाम की ओर अभिमुख आत्म प्रदेशों का जो व्यापार होता है, वह वचन योग कहलाता है। यह वाक् लब्धि मतिज्ञानावरण, अक्षर श्रुत ज्ञानावरण आदि कर्म के क्षयोपशम से होती है। (३) काम योग-औदारिक आदि शरीर वर्गणा के पुद्गलों के आलम्बन से होने वाले आत्म प्रदेशों के व्यापार को काम योग कहते हैं। इन्हीं मुख्य भेदों के विस्तार से योग के पन्द्रह भेद किये गये हैं— (१) सत्य मनोयोग, (२) असत्य मनोयोग (३) मिश्र मनोयोग (४) व्यवहार मनोयोग (५) सत्य भाषा (६) असत्य भाषा (७) मिश्र भाषा (८) व्यवहार भाषा (६) औदारिक (१०) औदारिक मिश्र (११) वैक्रिय (१२) वैक्रिय मिश्र (१३) आहारक (१४) आहारक मिश्र तथा (१५) कार्मण योग। इनमें से सं. १ से ४ मनोयोग से सं. ५ से ८ वचन योग से तथा सं. ६ से १५ काम योग से सम्बन्धित हैं। मन, वचन, २४२
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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