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________________ लेश्या के पुद्गल आत्मा को लगते हैं, उन पुद्गलों को द्रव्य लेश्या कहते हैं । लेश्याओं के नाम द्रव्य लेश्याओं के आधार पर ही रखे गये हैं । योग परिणामों के अन्तर्गत पुद्गलों के वर्णों की अपेक्षा से द्रव्य लेश्या छः प्रकार की कही गई है : (१) कृष्ण लेश्या - काजल के समान काले वर्ण वाली यह लेश्या मन के उस रूप को दिखाती है जो पांच आश्रवों में प्रवृत्ति करता है, तीन गुप्तियों से अगुप्त रहता है, छः काया के जीवों की विराधना करता तीव्र भावों से आरंभ समारंभ करता है, निर्दयता के परिणामों के साथ क्रूर और नृशंस बनता है और इन्द्रियों को कतई वश में न रखते हुए दुष्ट भावों से युक्त बन कर प्रवृत्ति करता है। कृष्ण लेश्या के दर्पण में मन की जो प्रतिच्छाया आती है, वह कठोर, क्रूर परिणामधारी और अजितेन्द्रिय मन की होती है। (२) नील लेश्या - अशोक वृक्ष के समान नीले रंग वाली इस लेश्या के माध्यम से मन का वह रूप प्रतिबिम्बित होता है जो ईष्यालु, कदाग्रही, तपस्या नहीं करने वाला, अविद्यायुक्त, मायावी, निर्लज्ज, विषय भोगों में आसक्त, द्वेषी, मूर्ख, प्रमादी, रसलोलुप, भोगों की प्राप्ति के लिए कामुक, आरंभ से निवृत्त नहीं होने वाला, क्षुद्र, तुच्छ तथा दुस्साहसिक और वैचारिकता से हीन होता है । मन के ऐसे भाव नील लेश्या में अभिव्यक्त होते हैं। नील लेश्या वाला जीव सम्यक्ज्ञान एवं तपाराधन में शून्य होता है। (३) कापोत लेश्या - कबूतर के समान रक्त - कृष्ण वर्ण वाली इस कापोत लेश्या के दर्पण में मन का वह स्वरूप दिखाई देता है जो वक्र (टेढ़ेपन से ) विचारने वाला, वक्र वचन निकालने वाला तथा वक्र ही कार्य करने वाला होता है। ऐसे मन का मालिक अपने दोषों को ढकता है, छलपूर्वक बर्ताव करता है और सर्वत्र दोषों का ही आश्रय लेता है । वह मिथ्या दृष्टि, अनार्य, चोर, मायावी, मत्सरी तथा मर्मभेदी शब्द कहने वाला और दूसरों की उन्नति नहीं सह सकने वाला होता है । (४) तेजोलेश्या - तोते की चोंच के समान रक्त वर्ण के द्रव्य तेजोलेश्या के पुद्गलों का सम्बन्ध होने पर मन में ऐसा परिणाम उत्पन्न होता है कि वह अभिमान का त्याग करके मन, वचन और शरीर से विनय वृत्ति वाला बन जाता है। वह चपलता रहित, माया रहित, कूतुहल आदि नहीं करने वाला, परम विनम्र भक्ति रखने वाला, इन्द्रियों का दमन करने वाला, स्वाध्याय आदि में रत रहने वाला, उपधानादि तप करने वाला, धर्म में सुदृढ़ रहने वाला, पाप से भय खाने वाला, सभी प्राणियों का हित चाहने वाला शुभ भावों से युक्त बन जाता । तेजोलेश्या वाला जीव मुक्ति का अभिलाषी भी बन जाता है। (५) पद्म लेश्या - हल्दी के समान पीले रंग वाली इस लेश्या के दर्पण में मन का स्वरूपवान् चेहरा सामने आता है। पद्म लेश्याधारी क्रोध, मान, माया, लोभ, रूप कषाय को मन्द बना देता है और शान्त चित्त रख कर अपने को अशुभ प्रवृत्तियों से दूर हटा लेता है। वह अल्प कषाय वाला, शान्त चित्त वाला, अपनी आत्मा का दमन करने वाला, स्वाध्याय तप आदि में निरत रहने वाला, परिमित बोलने वाला, सौम्य, उपशान्त और जितेन्द्रिय बन जाता है । (६) शुक्ल लेश्या - शंख के समान श्वेत वर्ण के द्रव्य शुक्ल लेश्या के पुद्गलों का संयोग होने पर मन में ऐसा परिणाम होता है कि वह आर्त्त व रौद्र ध्यान को छोड़कर धर्म ध्यान व शुक्ल २४० 6
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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