SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 436
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्वेत वस्त्र को भी दाखिल कर दिया हो। यतिधर्म समुच्चय में निम्न लिखे हुए चार प्रकार के वस्त्र ग्रहण करने की धर्मक्ष संन्यासी को भाज्ञा दी गई है । जैसे सोमं शाणमयं वापि, वासः कांक्षेच्च कौशिकम् । अजिनं चापि धर्मज्ञः, साधुम्यस्तान पीड़यन् ।। अर्थः–क्षौम ( अत्सी के रेशों से बना हुआ वस्त्र ) शाणभय (शण-जूट के रेशों से बना हुआ ) रेशमी वस्त्र और और मजिन मृगचर्म आदि का वस्त्र, इन चार प्रकार के वस्वों में से जिसकी आवश्यकता हो उसको धर्मज्ञ संन्यासी सजन पुरुषों से उनको दुःख न पहुंचा कर प्राप्त करे । कात्यायन स्मृतिकार का विधान उक्त विधान से विरुद्ध पड़ता है। वे लिखते हैं कि: ऊर्णा केशोद्भवा ज्ञेया, मलकीटोद्भवः पटः । कस्तूरी रोचनं रक्तं, वर्जयेदात्मवान् यतिः ।। हिंसोद्भवं पट्टमूलं, कस्तूरी रोचना तथा । प्राण्यङ्गश्च तथोर्णा च, यतीनां पतनं ध्र वम् ।। वस्त्रं कार्पासजं ग्राह्य, काषायुक्तमयाचितम् । अन्यद् वस्त्रादिकं सर्व, त्यजन्मूत्र पुरीषवत् ॥ अर्थः-ऊनी वस्त्रों केशों से उत्पन्न होता है, और रेशमी बस्त्र कीटों के मल से उत्पन्न होता है, इसलिये पात्मार्थी यति
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy