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________________ ( ३५७ ) ' उक्त वस्त्रों को, कस्तूरी को, गोरोचना तथा रक्तरञ्जित को वर्जित करे, पट्टकूल वस्त्र कस्तूरी, तथा रोचना ये सभी हिंसा से उत्पन्न होते हैं और ऊर्णा भी प्राण्यङ्ग है । इसलिये इनको प्रहण करने से यतियों का पतन होता है, अतः यति को केवल कार्पासबस्त्र काषाययुक्त ही अयाचित मिले तो ग्रहण करना उचित है, इसके अतिरिक्त उक्त वस्त्रादि को मलमूत्र की तरह त्याग दें । आषिक बस्त्र ( ऊनी वस्त्र ) को मनुर्जी भी संन्यासी के लिये निषेध करते हैं । विकं त्वधिकं वस्त्रं, तूलीं तूलपटीं तथा । प्रतिगृह्य यतिश्चैतान्, पतते नात्र संशयः ॥ अर्थ :- ऊनी वस्त्र, आवश्कता से अधिक वस्त्र, तूली (गद्दी) तूलपटी ( रेशमी चद्दर ) इनको ग्रहण करके यति तत्काल पतित हो जाता है । यति धर्म समुच्चय में निम्न प्रकार के पादत्राण रखने की व्यवस्था दी गई है। उपानहौ गृहीतव्ये, कार्पासमयमप्युत । ऊर्णातारोद्भवं वाऽपि यद्वाऽन्यत्स्यादयाचितम् ॥ अर्थः- संन्यासी सूत्रमय, ऊर्णामय, अथवा इसी प्रकार की अन्य जूतियाँ बिना मांगे मिले तो ग्रहण कर सकता है।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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