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________________ ( ३८५ ) के वस्त्र कैसे होते थे, और बाद में उनमें क्या परिवर्तन हुआ इस बात का श्रुति स्मृति के प्रमाणों से विचार करेंगे । अर्थपरिव्राड् विवर्णवासाः इस जाबालोपनिषद् वाक्य से यह प्रतीत होता है कि पूर्वकाल में परिव्राजक के वस्त्र वर्णहीन अर्थात् स्वाभाविक श्वेत रहते होंगे, परन्तु पिछली स्मृतियों में तथा धर्मशास्त्रों में संन्यासी का वस्त्र गेरूआ होना चाहिये ऐसा प्रतिपादन किया है । इतना ही नहीं किंतु कहीं-कहीं तो श्वेत वस्त्रों को यति के षट्पतनों में एक कारण मान लिया गया है । बुद्ध तथा उनके भिक्षु काषायव के वस्त्र रखते थे, इससे यह तो निश्चित है कि आज से ढाई हजार वर्ष पहले भी संन्यासी भगवा वस्त्र रखते थे । जैन सूत्रों में भी त्रिदण्डी संन्यासी काषाय रंग के वस्त्र रखते थे, ऐसे उल्लेख स्थान स्थान पर मिलते हैं। इससे वैदिक संन्यासियों के वस्त्र गेरुआ रंग के होते थे इसमें दो मत नहीं हो सकते, तब " परिवार विवर्णवास:" इस वाक्य का वास्तविक अर्थ क्या हो सकता है, इसका विद्वानों को विचार करना चाहिए । श्वेतवस्त्र रखने पर वैदिक यति का पतन होने का लिखा है इसका भी कोई गूढ कारण होना चाहिए। वैदिक सम्प्रदाय में ऐसा तो कोई परिव्राजक सम्प्रदाय नहीं रहा है जो श्वेत वस्त्र की हिमायत करता हो और उसके उत्तर में यति के पतन कारणों में
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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