SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३४२ ) कारण जाति को बाहर कर दिया जाता है। इस प्रकार तेतीस वर्षों तक रह कर प्रत्येक मनुष्य अपने घर चला आता है। जहां वह सुख और शान्ति के साथ अवशिष्ट जीवन व्यतीत करता है।" गृहस्थाश्रमी ___ गृहस्थाश्रमी तीन प्रकार के होते हैं ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य । इन तीनों के कर्तव्य भिन्न भिन्न होने पर भी कतिपय ऐसे गुण हैं जो सभी में होने आवश्यक माने गये हैं । जैसे---------- दयासर्वभूतेषु शान्तिरनसूया-शौच मनायासोमंगलमकार्पण्यमस्पृहेति। अर्थ-सर्व प्राणियों के ऊपर दया, क्षमा का गुण, ईर्ष्या का अभाव, पवित्रता, श्रम का अभाव, मङ्गल स्वरूपता, कृपणता का अभाव, निस्पृहता ये आत्मा के स्वाभाविक गुण होते हैं, जो सभी आश्रमवासियों में अपनी स्थिति के अनुरूप इनका होना आवश्यक माना गया है। गृहस्थ ऋतुकाल के अतिरिक्त स्त्री के पास नजायऐसा आपस्तम्बोय धर्मसूत्र कहता है । यथा ऋतुकाल एव वा जायामुपेयात् । अर्थात्-ऋतु काल में ही गृहस्थ अपनी स्त्री के पास जाय । ब्राह्मण गृहस्थाश्रमी के कर्म वरितठमृति में लिखा है
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy