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________________ ( ३४१ ) उपनीत द्विज के पालने योग्य व्रत बोधायन गृह्य सूत्र में मधु मांस श्राद्ध सूतकान्न मनिर्दशाहं संढिनी क्षीर क्षत्राक निर्यासौ विलयनं गणान्नं गणिकानमित्येतेषु पुनः संस्कारः। अर्थ-मधुभक्षण, मांसभोजन, श्राद्धान्न भोजन, सूतक वाले घर का दश दिन के अन्दर भोजन, ऊँटनी का दूध, क्षत्राक, वृत का निर्यासरस, विलयन, गण का अन्न और गणिका का अन्न ये सभी उपनीत द्विज के लिये अभक्ष्य हैं । इन का भक्षण करने पर फिर संस्कार करना चाहिए। मेगास्थनीज का ब्रह्मचर्याश्रम वर्णन ग्रीक यात्री विद्वान् मेगास्थनीज ने द्विजाति के आँखों देखे ब्रह्मचर्याश्रम का वर्णन नीचे अनुसार किया है। "जन्म के बाद शिशु एक के बाद दूसरे मनुष्य के रक्षकत्व में रहता है और जैसे जैसे वह चढ़ता है वैसे वैसे उस के शिक्षक अधिक योग्य नियत किये जाते हैं। दार्शनिकों का गृह नगर के सामने एक कुञ्ज में सामान्य हाते के भीतर होता है। वे बड़े सरल रीति से रहते हैं और कुश या चर्म के आसन पर सोते हैं । वे मांस भोजन नहीं करते और सम्भोग सुख से अपने को वश्चित रखते हैं । वे गूढ़ विषयों पर कथोपकथन करने में और श्रोताओं को ज्ञान प्रदान करने में अपना समय व्यतीत करते हैं। श्रोता बोलने या खासने नहीं पाता थूक कहां तक फेंक सकता है। और यदि वह ऐसा करता है तो उसी दिन संयमी नहीं होने के
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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