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________________ ( २६१ ) ६ पिछला मुहूर्त्त भर दिन रहते पानी का त्याग कर के सन्ध्या समय दैवसिक प्रतिक्रमण करता है । प्रहर पर्यन्त स्वाध्याय व्यान करके १० - फिर रात्रि के प्रथम . सो जाता है । - ११- लग भग छः घंटे तक वह निद्रा लेता है। रात्रि का चतुर्थ प्रहर लगने पर वह उठ जाता है । • १२ - कृष्ण तथा शुक्ल चतुर्दशी के दिन श्रमण : उपवास करता है, और पाक्षिक प्रतिक्रमण करता है। भाषाद शुक्ला कुरिएमा, कार्त्तिक शुक्ल पूर्णिमा, और फाल्गुन शुक्ला पूर्णिया को यह:चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करता, और चतुर्दशी भक्त ( दो दो उपवास ) का तप करता है । भाद्रपद शुक्लापञ्चमी को सांवत्सरिक प्रति क्रमण करता है, और तृतीया, चतुर्थी, पञ्चमी का अष्टमभक्त ( तीन उपवास ) तप करता है । पूर्णिमा का षष्ठ १ wony १ इस नियम में भी परिवर्तन हो चुका है, जब तक सांवत्सरिकप्रतिक्रमण भाद्रपद शुक्ला पंचमी को होता था, तब तक चातुर्मासिक प्रतिक्रमण पूर्णिमा को होता रहा, परन्तु विक्रम के पूर्व प्रथम शताब्दी में प्राचार्य प्रार्यकालक सूरिजीने कारणिक भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को सांवत्सरिक पर्व किया, उसके बाद चातुर्मासिक प्रतिक्रमरण भी चतुर्दशीप्रागये । " २ - आर्य कालक द्वारा सांवत्सरिक पर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को करने के बाद सर्व जैन संघ ने उसी दिन सांवत्सरिक पर्व करना नियत ** "
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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