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________________ ( २६० ) हो तो सूत्र का अध्ययन करता है, और अन्य साधु अपने अभ्यस्त शास्त्रों का पारायण करते हैं। ४-दिवस के द्वितीय प्रहर में श्रमण पढ़े हुए सूत्र का प्राचार्य के पास अर्थ सीखता है। ५-दो प्रहर हो जाने पर वह भिक्षा चर्या में जाने की तैयारी करता है, और गुरु की आज्ञा लेकर बस्ती में से जरूरी आहार -पानी लेकर अपने उपाश्रय में आता है। ६-प्राचार्य के सामने ईर्ष्या पथ प्रतिक्रमण कर भिक्षान्न गुरु को बताता है, और उस में से कुछ लेने के लिये गुरु को तथा अन्य श्रमणों को प्रार्थना करता है। ७-भोजन करने के बाद भोजन पात्रों को साफ कर योग्य स्थान पर रख के फिर देह चिन्ता-निवृत्त्यर्थ स्थण्डिल भूमि को जाता है, अगर उसे विहार कर सामान्तर चला जाना होता है, ती भी दिवस के तीसरे प्रहर में ही विहार करेगा'। फिर वह शास्त्राध्ययन करता है। . .. -दिवस के चतुर्थ प्रहर में वह प्रतिलेखना कर के स्वाध्याय करता है। १- तीसरे पहर विहार करने का नियम भी पाजकल शिपिन हो मथाई। श्रमणों का अधिक भाग माज कल दिनके पहले प्रहर में ही विहार किया करता है।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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