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________________ २६२ ) श्रमण की जीवन-चर्या इस शीर्षक के नीचे हम श्रमण के उन नियमों की सूची देंगे, जिन्हें वह जीवन पर्यन्त पालन करता है । १ - श्रमण किसी भी सचित्त पृथ्वी को नहीं खोदता । २ - वह खेती के लिये हलकृष्टभूमि में नहीं चलता । ३ - श्रमरण प्रासुक पानी को छोड़कर सचित्त जल को कभी नहीं पीता । ४ - वह अपने कपड़े नदी तालाब आदि में न धोकर खास आवश्यकता के समय अचित्त जल " गर्म पानी" से धोता है । किया, जो विक्रम की बारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक चलता रहा । विक्रम सम्बत् १९६६ ग्यारह सौ ऊनहत्तर में अंचल गच्छ के प्रवर्त्तक प्राचार्य ने चतुर्थी को किये जाने वाले सांवत्सरिक पर्व का विरोध किया । उन्होंने कहा कालकाचार्य ने कारण वश चतुर्थी को पर्वाराधन किया था, परन्तु अब वह कारण नहीं है, श्रत::- पर्युषण पर्व पंचमी को ही मनाना चाहिए | पौर्णमिक गच्छ वालों ने भी अंचल गच्छ वालों का साथ दिया । प्राज ग्रांचलिक, पौर्णमिक लोकागच्छ तथा पार्श्व चन्द्र गच्छ के अनुयायी श्रमण तथा श्रावक भाद्रपद शुक्ल पंचमी को सांवत्सरिक पर्व मनाते हैं, तपागच्छ, खरतर गच्छ, ग्रागमिक श्रादि जैन संघ का मुख्य भाग आर्य कालक की परम्परानुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को सांवत्सरिक पर्व का श्राराधन करता है और प्राषाढ़ी, कार्तिकी, फाल्गुनी, शुक्ल चतुर्दशी को चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करता है ।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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