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________________ ( २७५ ) doll " यरिए उब्जा उबज्झाए, पवित्ति थेरे गणी गणधरेय । गण वच्छेय णींसा, पवित्र्तिण तत्थ प्रति ॥ " वृहत्कल्प सू० पं० ० ११३५ अर्थः- आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्त्ती. स्थविर, गंणी, और गणधर (कुल स्थविर ) गणावच्छेदक और प्रवर्त्तिनी । १ - आचार्य गण स्थविर जिनके अनुशासन में सारा गण रहता था वे आचार्य कहलाते थे । विद्यार्थी साधुओं को आचार्य सूत्रों का अनुयोग (सूत्रों का अर्थ ) देते और किसी भी दर्शन के विद्वान् अथवा अन्य किसी महत्त्वपूर्ण कार्यों के सम्बन्ध में कोई भी पूछने वाला आता तो उनसे बात चीत करते, गच्छ के अतिरिक कार्यो में आचार्य प्रायः हस्तक्षेप नहीं करते थे २- उपाध्याय उपाध्याय का मुख्य कर्त्तव्य साधुओं को सूत्र पढ़ाना था; इसके अतिरिक्त वे आचार्य के प्रत्येक कार्य में सहायक होते थे। इनका दर्जा युवराज जैसा माना गया है । ३- प्रवर्त्ती अथवा प्रवत्त क प्रवर्ती की कतव्यं गण के साधुओं को उनके योग्य कामों में नियुक्त करना, और उनके कार्यों की देख भाल रखना होता " था । प्रवर्त्त क का दर्जा गृह मन्त्री का सा माना गया हैं ।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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