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________________ ( २७१ ). १-कुल ___एक प्राचार्य का शिष्य परिवार जिनकी संख्या कम से कम आठ की होती और नवमां उनका गुरु इस प्रकार के एक आचार्य के परिवार को कुल ' नियत किया । २-पण _ कुल के साधुओं की व्यवस्था उनके पारस्परिक सम्बन्धों को ठीक रखना उनमें स्थविर के स्वाधीन रक्खा गया था। ' ... उपयुक्त तीन अथवा अधिक एक आचार वाले कुलों का समुदाय गण कहलाता था, और उनके ऊपर एक प्राचार्य शासक के रूप में नियत रहता था, जो गण स्थविर कहलाता था। गण में कम से कम अट्ठाईस श्रमणों की संख्या होना अनिवार्य था ( तीन कुलों की श्रमण संख्या २७ सत्ताईस और एक गण स्थविर कुल २८ अट्ठाईस ) यह तो कनिष्ठ प्रकार का गरण हुआ परन्तु गणों में श्रमण-संख्या इससे बहुत अधिक हुआ करती थी। इसलिये गण स्थविर अपने गण में से भिन्न २ कार्यों के लिये भिन्न भिन्न पदाधिकारियों को नियुक्त करता था जिन का नाम निर्देश नीचे की गाथा में किया है। टिप्पणी:-१. कुल की यह श्रमण-संख्या सब से कनिष्ठ है, इससे अधिक सैकड़ों श्रमण एक कुल में हो सकते थे। अगर वे एक आचार्य का शिष्य प्रशिष्यादि परिवार होता।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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