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________________ ( १८० ) ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देने में समर्थ होते थे, वे ही यज्ञ कराते थे, और उनके यज्ञों में वैध हिंसा होती थी। ईशा के पूर्व षष्ठ शताब्दी तक इस प्रकार की हिंसा होती रही, तब तक मधुपर्को पितृयज्ञों में भी मांसका ब्यवहार सर्वथा बन्द नहीं हुआ था. परन्तु उनके बाद सभी प्रकार के हिंसात्मक अनुष्ठान धीरे धीरे अदृष्ट होने लगे, जिसके अनेक कारण हैं । प्रथम तो राजा लोग और सेठ साहूकार लाखों रुपया खर्च कर जो बड़े-बड़े अनुष्ठान करवाते थे, उनकी भावनायें, दिशायें बदल चुकी थीं। अधिकांश क्षत्रियों की मनो-भावनायें उपनिषदों की चर्चा की तरफ झुक गयी थीं। कुछ यजमान बनने वाले धनाढ्य गृहस्थ भगवान बुद्ध और महावीर के उपदेशों से अहिंसा धर्म के उपासक बन चुके थे, और बनते जारहे थे। इस परिस्थिति में श्रोत्रिय ब्राह्मणों को यज्ञार्थ आमन्त्रण आने बन्द होगये , फिर भी कुछ पीढियों तक यज्ञ परम्परा चलती रही, परन्तु इस समय के यज्ञों में होता, अध्वर्यु, उद्गाता, ब्रह्मा, आचार्य, पुरोहित आदि को वह दान दक्षिणा कहां जो पूर्वकाल में प्रति अधिकारी को सौ से लगाकर हजार हजार सुवर्ण सिक्के के रूप में मिलती थी। अन्त में याज्ञिकों ने अपनी दिशा बदली और पूर्वकालीन कई पशुबध आदि की कई प्रवृत्तियां कलियुग के नाम से बन्द करदी, और वैदिक धर्म के स्थान स्मार्त्त पौराणिक आदि अनेक सम्प्रदायों का संगठन किया और ऐसा करके वे जैन तथा बौद्ध सम्प्रदायों के साथ खड़े रह सके।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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