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________________ ( ७६- ) अपना वाजसनेय नामक सम्प्रदाय चला करके यज्ञों में पशुवध करना निर्दोष माना। अगस्त्य ऋषि ने नर्मदा और विन्ध्याचल पर्वत को लांघ कर वैदिक धर्म के प्रचारार्थ दक्षिणापथ में प्रवेश किया और धर्म का प्रचार शुरू किया । परन्तु उनको कई कठिनाइयाँ सामने आई, तत्कालीन वहां के मनुष्य जंगली और मांसाहारी होने के कारण अगस्त्य को और खास करके उनके साथ के नौकरों को भोजन की कठिनाई उपस्थित हुई, अगस्त्य स्वयं तो कन्द फलादि खाकर भी रह सकते थे, परन्तु उनके आदमियों से इस प्रकार रहना कठिन था। परिणाम स्वरूप उन्होंने यज्ञ में पशुवध कर उसके मांस से नौकरों का पेट भरने की व्यवस्था की। तीति । १. “स धेन्वं चानडुहश्च नाभीयात् । धेन्वनडुहौ वाइदं सर्व विभ्रतो देवा अब्र वन् धेन्वनडुहौ वा इदं सर्वं विभ्रतो हन्त ! यदन्येषां वयसां वीर्यं तद् धेन्वनयोश्निीयात् तदहोवाच याज्ञवल्क्योऽनाम्येवाहं मांसलमद् भव ' 'शतपथब्राह्मण' ३३१।२।२१ __ अर्थ-गाय और बैल को नहीं खाना चाहिये, क्योंकि गाय और बैल ये सबके आधार हैं । देवताओं ने कहा-हमने सर्व पशुओं की शक्ति गाय और बैल में रखकर इनको प्रजा का आधार बना दिया है इसलिए गाय और बैल म खाया जाय। इस पर याज्ञवल्क्य बोले-जो गाय और बैल मांसल होता है उसको मैं खाता हूं।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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