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________________ (. ७८ ) . अर्थात्-शास्त्राध्ययन को ब्रह्मयज्ञ कहते हैं, अग्नि में अपने भोज्य पदार्थ की आहुति देना देवयज्ञ हैं, पितरों के निमित्त स्व. धाकार पूर्वक पिण्ड देना पितृयज्ञ, भूतों के निमित्त बलि देना भूतयज्ञ, और अतिथि रूप से आये हुए ब्राह्मणों को भोजन देना मनुष्य-यज्ञ कहलाता है। इन पांचों यज्ञों को शास्त्र में महायज्ञ के नाम से निर्दिष्ट किया है । भारतीय वैदिक धर्म की सभ्यता की जड़ ये ही पञ्च-महायज्ञ थे। शास्त्र-पठन-पाठन की परम्परा देवताओं की पूजा, अपने पूर्व पुरुषों के प्रति श्रद्धा निम्नकोटि के देव जो पृथिवी की सतह पर अदृश्य रूप में फिरा करते हैं उनको सन्तुष्ट रखने की भावना, और आगन्तुक अतिथि ( मेहमान ) का सस्कार करना इत्यादि मानवोचित कर्त्तव्य आज भी हिन्दू जनता में दृष्टि गोचर होते हैं । बे उक्त पञ्च-महायज्ञों का ही रूपान्तर है। ___ उक्त पञ्च महायज्ञों का उद्देश कर पुरोहित वर्ग रह गये होते तो मूल वैदिक संस्कृति में जो प्रचुर परिवर्तन हुआ वह नहीं होता । परन्तु याज्ञवल्क्य जैसे ब्रह्मनिष्ठ विद्वानों ने और अगस्ति ऋषि जैसे वैदिक धर्म के प्रचारकों ने वेदों की मौलिकता और तज्जन्य वैदिक संस्कृति की उतनी चिन्ता नहीं की, जितनी कि उन्होंने अपने विचारों और उद्देशों की की। सभी ब्राह्मण विद्वान् दीक्षित अवस्था में मांस न खाने और गोषध न करने के विषय में एकमत थे, फिर भी याज्ञवल्क्य उनके साथ नहीं रहे क्योंकि वे ब्रह्मवादी थे अन्न और मांस में उन्हें कोई अन्तर नहीं दीखा, और
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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