SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "यज्ञार्थं ब्राह्मणैर्वध्याः, प्रशस्ता मृगपक्षिणः । भृत्यानां चैववृत्यर्थ, मगस्त्यो ह्यचरत्पुरा ॥२२॥ “मनुस्मृति" अर्थः -यज्ञों के लिये, तथा भृत्यों की आजीविका चलाने के लिये, ब्राह्मणों को प्रशस्त पशु और पत्तियों का वध करना चाहिए, पूर्वकाल में अगस्त्य ऋषि ने इसी प्रकार आचरण लिया था । . ....यज्ञ करने और कराने के अधिकारी - वैदिक ग्रन्थों में उक्त पांच महायज्ञों के अतिरिक्त ब्राह्मण प्रन्थों में अन्य बहुतेरे यज्ञों का निरूपण किया गया है। और इन सभी यज्ञों के करने का अधिकार ब्राह्मण को दिया गया है, तब कराने के अधिकारी सभी द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ) माने गये । इन यज्ञों का क्रम नीचे मुजब है। .....अथातो यज्ञक्रमाः - "अग्न्याधेयमग्न्याधेयात, पूर्णाहुतिः पूर्णाहुतेरग्निहोत्रमग्निहोत्राद् दर्शपूर्ण मासौ दर्शपूर्णमासाभ्यामानहायणम् , . आग्रहाहायणा चातुर्मास्यानि, चातुर्मास्येभ्यः पशुबन्धः, पशुबन्धादग्निष्टोमोऽमिष्टो भामजसूयो राजसूयाद् वाजपेयः, वाजपेयादश्व मेघः, अश्वमेधापुरुषमा पुरुषमेधासल मेघः, सर्वमेघा दक्षिणावन्तो, दक्षिणमनायो अहिणा, अक्षिणाः सहस्र दक्षिणे प्रत्यतिष्ट स्ते वा एते यज्ञक्रमाः । ॥६॥
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy