SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 743
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 20 આચાર્યશ્રી યશોદેવસૂરિજી લિખિત R. वृह संग्रही-हिहीनी. प्रस्तावना २.24.2424 વિ. સં. ૨૦૪૯ ४.सन १८८3 SS संपादकीय निवेदन सं. आ. यशोदेवसूर 2.12.2012R. २४ CHRIYA यहाँ जो प्रस्तावना दी गई है, वह गुजराती अनुवादवाली संग्रहणीमें जो दी हैं उसके आधार ' पर उल्लिखित है। क्योंकि जो बात गुजरातीके लिये कही गई है, वही हिन्दी-ज्ञाताओंके लिये लिखनी है। जैनसंघमें पाठ्यपुस्तकके रूपमें प्रसिद्ध ऐसे सुप्रसिद्ध संग्रहणीरत्न-वृहत संग्रहणी ग्रन्थके प्रकाशित गुजराती अनुवादके आधार पर ही किया गया वह हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हो रहा है। इस महान् ग्रन्थका गुजराती अनुवाद परमपूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री विजयमोहनसूरीश्वरजी महाराजके पट्टशिष्य परम पूज्य प्रतापसूरिजी म.के पट्टशिष्य और मेरा गुरुदेव SNS प. पू. आ. श्री विजय धर्मसूरिजी म.की कृपा-सहायसे मैंने मेरी १८ से २० वर्षकी उम्रमें किया प्रक था। मूलग्रन्थ प्राकृत गाथाबद्ध है। ३४६ गाथाएँ हैं। आगमशास्त्र-वांचनका अधिकार साधुओंमें से भी सभीको नहीं होता। और वांचनके योग्य बुद्धि भी जिनकी तीव्र नहीं होती ये लोग भी साह आगमोंमें विद्यमान कतिपय विषयोंका ज्ञान प्राप्त कर सके, उनके लिये अनेक ग्रन्थों-विषयोमसे - चयन करके उनको संग्रहके रूपमें आयोजन किया, और उन विषयोंको ३४६ गाथाओमें, ११वी शतीमें विद्यमान पूज्यपाद विद्वान आचार्यश्री चन्द्रमुनीश्वरने गूंथ दिया। यह कृति विविध विषयोंकी संग्रहरूप होनेसे 'संग्रहणी' अथवा 'संग्रहणीरत्न' ऐसे सार्थक नामसे सम्बोधित है। दृश्यादृश्य-विश्वव्यवस्था, भूगोल, खगोल, स्वर्ग, मृत्यु और पाताल-इन तीन लोकोंसे सम्बद्ध आकर्षक विषयोंके कारण ८०० वर्षों से जैनसंघमे सैंकड़ों आत्माएँ इस ग्रन्थको 15 22-242.12.2M202422212 222 (MROMOMWS RSAR MSRLMS PAR1
SR No.022874
Book TitlePrastavana Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherMuktikamal Jain Mohanmala
Publication Year2006
Total Pages850
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy