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________________ "on".......... ....."OR OCK"code " ."..." में जाते हैं, उनका क्रम उपर से बड़ा, बीच में मध्य और तीसरा छत्र छोटा। इस परम्परा को भी मार्गदर्शन दिया कि क्रमशः छोटे से लेकर तीसरा छत्र बड़ा होना चाहिए। इसी प्रकार अशोक वृक्ष के साथ चैत्य वृक्ष--ज्ञानवृक्ष होना ही चाहिए, इसकी प्रवल 2 पुष्टि भी की। शास्त्र-पाठों के आधार से यह सिद्ध किया कि समवसरण में अशोक वृक्ष 8 के साथ चैत्य वृक्ष भी होता था। इसी प्रकार तीर्थकर देवों के दीक्षा ग्रहण करने के समय, लुंचन करने के पश्चात् केशों की वृद्धि होती थी या नहीं, इस पर भी आगमिक चर्चा की। समाज द्वारा इनके अनुसंधानों को सहर्ष स्वीकार करना यह प्रकट करता है कि आगम- साहित्य और जैन-साहित्य के ये तलस्पर्शी विद्वान है। समयोचित विचार ___ कई शताब्दियों से यह परम्परा रही है कि मंदिरमें जो प्रतिष्ठित मूर्तियाँ विराजमान की। जाती हैं, उनके चक्षु प्रायः ऊपर से लगाए जाते हैं। इस पर भी आगमों के उद्धरणों के ? 3 साथ इन्होंने यह प्रतिपादित किया कि प्राचीन परम्परा के अनुसार मूर्ति निर्माण के समय 3 ही चक्षु उत्कीर्ण करना श्रेयस्कर है। पुनः पुनः तीर्थकर मूर्तियोंके चक्षु चौटाना अशातना का 8 कारण है। वर्तमान में टी० वी० की संस्कृति उपयोगी होते हुए भी हमारे जीवन में जिस प्रकार : का विष घोल रही है, वह उपयुक्त नहीं है। इसके स्थान पर जैन-तीर्थकरो. जैन-महर्षियों और व्रतधारी त्यागीजनों के चरित्र के आधार पर विशेष रूप से प्रभावशाली नाटक लिने, जाने चाहिए बहुलता से उन्हें देखना चाहिए जिससे कि हमारे में कुछ धार्मिक संस्कार और * उन पूर्व-पुरुषों के प्रति लगन पैदा हो सकें। राजप्रश्नीय सूत्र के आधार पर उनका यह अभिमत है कि साधुगण भी इस प्रकार के विशिष्ट नाटक देख सकते हैं। वर्तमान मे शिक्षा--प्रणाली की दुर्दशा देखते हुए पंथ-निरपेक्ष के स्थान पर धर्म-निरपेक्ष का उद्घोष देखकर इनके हृदय को चोट पहुँची और धार्मिक संस्कारों की अत्यधिक न्यूनता। है देखकर उद्वेलित हो उठे। अतः उनका यह अभिमत है कि गाँव-गाँव में धार्मिक पाटशालामा के माध्यम से धार्मिक संस्कार दिये जाने अत्यावश्यक है। पाटशालाओं में विल सर पर का रटन न होकर अर्थ एवं विवेचन का अध्ययन भी होना चाहिए जिससे की जनता के संस्कार दृढ़ हो सकें और भावि जीवन पंथ-निरपेक्ष बन सके ! न्यायाचार्य यशोविजयजी के परम भक्त नव्य न्यायशास्त्र के अंतिम विद्वान और जैनागम-साहित्य के वेजोड विद्वान साहित्य शास्त्र :
SR No.022874
Book TitlePrastavana Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherMuktikamal Jain Mohanmala
Publication Year2006
Total Pages850
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
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