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________________ गिरफ्तार किया गया और उन्होंने इसी के तहत घर की तलाशी, कुर्की एवं अन्य पुलिस अत्याचारों को सहन किया।41 उ.प्र. सरकार का सूचना विभाग लिखता है कि ताराचन्द्र जैन ने सन् 1931 के लगान बन्दी आन्दोलन में भाग लिया और 6 मास कड़ी कैद की सजा पायी। 42 ताराचंद जैन ने इन आन्दोलनों में अपना पूर्ण योगदान दिया। उनका राष्ट्रीय आन्दोलन में कितना महत्त्व था, इसका उल्लेख इन शब्दों से स्पष्ट है-'ताराचंद जैन का दारानगर स्थित आवास हमेशा आन्दोलन तथा राजनीति का अड्डा हुआ करता था। जहाँ पर स्वतंत्रता आन्दोलन से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण निर्णय देश के वरिष्ठ नेताओं द्वारा लिये जाते थे। देश के शीर्षस्थ नेतागण महात्मा गाँधी, पं. जवाहर लाल नेहरू, गोविन्दवल्लभ पंत, सरदार पटेल आदि भूमिगत की स्थिति में श्री जैन के आवास पर रुकते थे। उन्होंने अपना सारा जीवन स्वतंत्रता संघर्ष में लगा दिया।143 ताराचंद जैन के साथ ही जैन समाज के अन्य बन्धुओं ने भी स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान दिया। इनमें कपूरचंद जैन का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उ.प्र. सूचना विभाग के अनुसार-कपूरचंद जैन पुत्र श्री सुखदेवराय निवासी दारागंज इलाहाबाद ने सन् 1930 के नमक सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लिया तथा 9 मास कड़ी कैद की सजा काटी।" इलाहाबाद जिले की कांग्रेस कमेटी में भी जैन समाज ने प्रतिनिधित्व किया। ताराचंद जैन कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रहे। 45 लखनऊ जैन समाज ने भी इस आन्दोलन में भाग लिया। यहाँ के जैन समाज ने न केवल स्थानीय स्तर पर अपितु सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में इस आन्दोलन का प्रचार-प्रसार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। लखनऊ निवासी ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद, जैन समाज के गाँधी कहलाते थे। उन्होंने पूरे उ.प्र. में व्यापक भ्रमण करके नमक आन्दोलन से जैन समाज को जोड़ने का प्रयास किया। कई जैन पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन करते हुए ब्रह्मचारी जी ने सदैव देशहित को ही सर्वोपरि स्थान दिया। उन्होंने सदैव सभी को खादी पहनने के लिए प्रोत्साहित किया।47 ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद के प्रयासों से पूरे प्रदेश के जैन मंदिरों में स्वदेशी वस्त्रों का अभूतपूर्व प्रचार हुआ तथा अनेकों नवयुवकों ने देश सेवा का संकल्प लिया। लखनऊ में महात्मा गाँधी द्वारा उद्घोषित इस आन्दोलन के अतंर्गत विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया तथा विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना भी दिया गया। 48 'जैन मित्र' के तत्कालीन अंक के अनुसार दिगम्बर जैन सभा ने दिनांक 21 जून 1930 को अपने मासिक अधिवेशन में सर्वसम्मति से निश्चय किया है कि लखनऊ में जितने भी जैन मंदिर हैं, उनमें जो वस्त्रादि प्रदान किये जायें, वह स्वदेशी हों। अगर कोई सज्जन सभा की आज्ञा न मानकर किसी मंदिर में विदेशी वस्त्र प्रदान करे, तो उस मंदिर के कार्यकर्ता को उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। सभा के द्वारा जैन सविनय अवज्ञा आन्दोलन और जैन समाज :: 111
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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