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________________ जैन मंदिरों में जैन लोगों द्वारा विदेशी वस्त्र पहनकर आना बंद कर दिया गया। 135 नजीबाबाद के साहू जैन परिवार ने भी इस आंदोलन में भागीदारी की। साहू श्रेयांस प्रसाद जैन कांग्रेस से जुड़कर कार्य करते रहे तथा आर्थिक रूप से गाँधी जी को मदद देते रहे।।36 साहू परिवार के नवयुवक मूलेशचन्द्र ने भी इस आन्दोलन में भाग लेकर जेल यात्रा की।।37 रामचन्द्र जैन के पुत्र मन्नोमल जैन भी इस आन्दोलन में जेल गये। उन्होंने 9 जनवरी, 1932 को एक मामले में एक महीने के कारावास और 50 रुपया जुर्माने और उसे न चुकाने पर एक सप्ताह के कारावास का दण्ड पाया। एक अन्य मामले में उन्हें एक वर्ष के कठोर कारावास का दण्ड दिया गया, सजाएँ साथ-साथ चलती थी। श्री जैन को 23 फरवरी, 1932 को जिला कारागार बरेली में स्थानान्तरित किया गया तथा वहाँ से 26 जुलाई, 1932 को उन्हें जिला कारागार फैजाबाद भेजा गया।।38 धामपुर (बिजनौर) में महावीरप्रसाद जैन ने जैन समाज को साथ लेकर नमक आन्दोलन में भाग लिया। सन् 1930 में उन्हें 1 वर्ष कड़ी कैद की सजा सुनाई गयी, पुनः 1932 में श्री जैन को 1 वर्ष कड़ी कैद और 100 रुपया जुर्माना किया गया। 39 श्री जैन बिजनौर और फैजाबाद जेलों में रहे। 40 नहटौर (बिजनौर) जैन समाज ने जैन मंदिरों में विदेशी वस्त्र लाने पर पाबंदी लगा दी। नहटौर के निवासी पं. कैलाश चन्द्र जैन ने भी इस दौरान, पत्रकारिता के माध्यम से देशसेवा की। इस प्रकार बिजनौर जिले के जैन समाज ने आगे बढ़कर इन आन्दोलनों में भाग लिया। इलाहाबाद में इस आन्दोलन का प्रारम्भ होते ही पूरे जनपद में देशभक्ति की लहर दौड़ गयी। राष्ट्रीय नेताओं के आगमन से इलाहाबाद सम्पूर्ण उ.प्र. में सुर्खियों में रहता था। गाँधी जी खादी प्रचार के लिए 15-18 नवम्बर, 1929 को जब इलाहाबाद आये थे। तब वहाँ के कार्यकर्ताओं ने आगामी आन्दोलन के सम्बन्ध में उनसे मार्गदर्शन प्राप्त किया। इन कार्यकर्ताओं में जैन समाज के नवयुवक भी थे। गाँधीजी से प्रेरणा पाकर इलाहाबाद के दारागंज कस्बे के जैन समाज ने इस आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। जैन समाज की ओर से ताराचन्द्र जैन, कपूरचंद जैन आदि ने राष्ट्रीय आन्दोलन का मोर्चा सम्भाला। ताराचन्द्र जैन हरसुखराय जैन के पुत्र थे, जो अपने इलाके के प्रतिष्ठित जमींदार थे। स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने से पूर्व ताराचंद जैन अवध प्रान्त की चन्दापुर रियासत के दीवान थे। स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ने के कारण श्री जैन ने अपने पद को त्याग दिया। उनके विषय में लिखा गया है कि श्री जैन सन् 1928 में पूज्य बापू महात्मा गाँधी की आवाज पर रियासत के दीवान पद से त्यागपत्र देकर स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गये और गाँव-गाँव में कांग्रेस की अलख जगाने और स्वतंत्रता का आह्वान करने निकल पड़े। सन् 1930 के आन्दोलन में अपनी सक्रिय गतिविधियों के कारण उन्हें पहली बार 110 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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