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________________ है वह राग नहीं, अनुराग है, प्रेम है । राग त्याज्य होता है, अनुराग नहीं । राग में आकर्षण और भोग होता है, अनुराग में प्रमोद और प्रसन्नता होती है, भोग नहीं । शुद्ध व शुभ भाव से आयी कषाय की कमी से कामना, ममता, अहंता, कर्तुत्व भाव और भोक्तृत्व भाव में कमी आती है । (द्रष्टव्य पृष्ट ४८ ) । कषाय की कमी रूप क्षायोपशमिक भाव से घाती कर्मों का क्षयोपशम रूप क्षय होता है और अघाती कर्मों की शुभ प्रकृतियों के अनुभाग बढ़ता है । (पृष्ट ५१ ) लेखक ने यह दृढ़तापूर्वक प्रतिपादित किया है पुण्य का अनुभाग किसी भी साधना से क्षय नहीं हो सकता । उन्होंने लिखा है कि यदि किसी को पुण्य के अनुभाग का क्षय इष्ट ही हो तो उसका एकमात्र उपाय है- संक्लेश भाव । पाप की वृद्धि ही एकमात्र पुण्य के अनुभाग के क्षय का उपाय है अन्य कोई उपाय मेरी जानकारी में नहीं है । (पृष्ठ ५३ ) लेखक ने श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय के मान्य ग्रन्थों के आधार पर निरूपित किया है कि शुभ परिणामों की वृद्धि से पुण्य प्रकृतियों के अनुभाग में वृद्धि होती है, जिससे पाप - प्रकृतियों के स्थिति बन्ध तथा अनुभाग बन्ध व पुण्य प्रकृतियों के स्थिति बन्ध का क्षय होता है । लोढ़ा साहब ने उपर्युक्त मन्तव्यों की पुष्टि दशवैकालिक सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, ध्यानशतक धवलाटीका आदि कर्मग्रन्थ ग्रन्थों से की है। निर्जरा तत्त्व [149]
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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