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________________ श्रमण-संस्कृति भारतीय धर्म ने समाज और कुटुम्ब की एकता की प्रत्यक्ष योजनाएं प्रस्तुत की हैं। सारे भारत की राष्ट्रीय एकता अप्रत्यक्ष रूप से धर्म ने संभव की है। भारत वासियों के लिए भारत के कोने-कोने में तीर्थ स्थान, पुण्यप्रद नदियां और धार्मिक क्षेत्रों की योजना देश की एकता के लिए हुई। सन्दर्भ 1. कल्पसूत्र, पृ० 264 2. आवश्यक नियुक्ति, पंक्ति 501 । 3. जगदीश चन्द्र जैन- जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ 343 4. आचारांगसूत्र, पृष्ठ 85 5. जर्नल ऑफ बिहार उड़ीसा रिसर्च सोसायटी, भाग - 3, पृ० 448 6. व्यवहार भाष्य, 6, 115 7. जैन जर्नल, भाग - 3, पार्ट, 4, पृष्ठ 168 8. आर्किआलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, भाग 51, कलकत्त 1931, पृष्ठ 268 9. यू० पी० शाह - स्टडीज इन जैन आर्ट, वाराणसी, पृ० 6 10. वही, पृ० 7-8 11. जैन जर्नल भाग 3, पार्ट 4, पृ. 171 12. जगदीश चन्द्र जैन - जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० 325 13. वही, पृ० 325 14. जैन मार्शल भाग 3, पार्ट 4, पृ० 171 15. वही, पृ० 171 16. वही, पृ० 171-172 17. जगदीश चन्द्र जैन - जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ० 325 18. वही, पृ० 252
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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