SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उड़ीसा में जैन धर्म का प्रचार चलता है कि उद्योत केसरी ने अपने शासन के पांचवें वर्ष में प्रसिद्ध कुमार पर्वत पर नष्ट तालाबों एवं मन्दिरों का पुननिर्माण करवाकर चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियां प्रतिष्ठित करवायीं थीं । उदार सोमस्वामी शासकों के काल में भी मुक्तेश्वर मन्दिर की चहारदीवारी के बाहरी रथिकाओं में तीर्थंकर मूर्तियां उत्कीर्ण की गयीं । जैन धर्म के महान संरक्षक राष्ट्रकूट शासकों के प्रभाव क्षेत्र में आने के फलस्वरूप संभवतः उड़ीसा में जैन निर्माण को काफी प्रोत्साहन प्राप्त हुआ । 333 जैन धर्म प्रारम्भ से ही व्यापार-वाणिज्य को प्रोत्साहित करने वाला रहा जिसकी पुष्टि साहित्यिक साक्ष्यों के अतिरिक्त मथुरा के शुंग एवं कुषाण कालीन जैन अभिलेखों से भी होता है। निशीथचूर्णी में पुरिम (पुरिय अर्थात् पुरी) का उल्लेख एक व्यापारिक केन्द्र के रूप में प्राप्त होता है जिसे जपट्टण कहा गया है कि जहाँ से जल मार्गों द्वारा सामग्रियां ले जायीं जाती थीं । 7 जैन ग्रन्थों में उड़ीसा में स्थित कांचनपुर का उल्लेख है जो व्यापार- र- वाणिज्य का एक प्रमुख केन्द्र था । जहाँ से लंका का व्यापार होता था । अतः स्पष्ट है कि उड़ीसा जैन श्रावकों का भी केन्द्र रहा होगा। इसी प्रकार उड़ीसा में जैन धर्म के प्रचार प्रमाण स्वरूप उदयगिरि एवं खण्डगिरि की गुफाओं के अतिरिक्त जयपुर, नन्दनपुर और कारपत जिले के भैरव सिंहपुर जैसे स्थलों से भी जैन मूर्तियां प्राप्त होती हैं। इसके अतिरिक्त मयूरभंज, बलसार, कटक आदि जिलों के विभिन्न स्थलों से भी जैन मूर्तियां प्राप्त होती हैं। कटक जिले के जजपुर स्थित अखण्डलेश्वर मन्दिर एवं मैत्रक मन्दिर के समूहों में भी जैन मूर्तियां सुरक्षित हैं जिससे पता चलता है कि उड़ीसा के अन्य अनेक स्थानों पर जैन धर्म काफी लोकप्रिय हो गया था । उड़ीसा में दिगम्बर सम्प्रदाय काफी लोकप्रिय रहा। जिसकी पुष्टि उड़ीसा के विभिन्न स्थानों से प्राप्त तीर्थंकरों की नग्न मूर्तियों से होती है । यहाँ पर पार्श्वनाथ, ऋषभनाथ, तथा महावीर स्वामी की ही प्रतिमाएं मुख्य रूप से प्राप्त होती हैं। इनमें भी सबसे अधिक लोकप्रिय प्रतिमा पार्श्वनाथ की है । अत: हम कह सकते हैं कि उड़ीसा में जैन धर्म पार्श्वनाथ के काल से लेकर आठवीं-बारहवीं शताब्दी तक लोकप्रिय रहा।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy