SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 425
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्ध धर्म का वैश्विकरण 9B परम्परा अनुसार बुद्ध का जन्म 563 ई० पू० में शाक्य नामक क्षत्रिय कुल में कपिलवस्तु के निकट नेपाल की तराई में स्थित लुम्बिनी ग्राम में हुआ था। जन्म होते ही वे खड़े हो गये सात पग आगे चलकर बोले यह मेरा अन्तिम जन्म है इसके बाद अब मुझे कोई जन्म ग्रहण नहीं करना है। पाँचवे दिन एक बड़े समारोह में बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के निर्वाचित राजा और गणतांत्रिक शाक्यों के प्रमुख थे। उनकी माता का नाम महामाया था जो कौशल वंश की राजकुमारी थी। जन्म के सातवे दिन उनकी माता का स्वर्गवास हो गया है इसलिए उनका पालन पोषण उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया। सिद्धार्थ के गोत्र का नाम गौतम था इस लिए इन्हें गौतम भी कहा जाता है। बचपन से ही राजकुमार सिद्धार्थ का ध्यान आध्यात्मिक चिंतन की ओर अधिक था। गौतम को सांसरिकता से आबद्ध करने के लिए 16 वर्ष की आयु में ही शाक्यवंशी राजकुमारी यशोधरा नामक रूपवती कन्या से उनका विवाह कर दिया गया। इस विवाह के लिए आयोजित की गई सभी प्रतियोगिताओं में सिद्धार्थ ने भाग लिया और विजयी हुए। परन्तु दांपत्य जीवन में भी उनका मन नहीं लगा वे लोगों के सांसारिक दुःखों को देखकर द्रवित हो उठते थे, और ऐसे दुःखों के निवारण का उपाय सोचने लगते थे। एक दिन गौतम अपने स्वामी भक्त सारथी चाण के राज्यीद्यान के समीप विचरण कर रहे थे उसी समय उन्हें चार दृश्य दिखाई दिये एक वृद्ध व्यक्ति, दूसरा रोगग्रस्त व्यक्ति, तीसरा एक मृतक व्यक्ति को लोग श्मशान ले जा रहे थे और उनके पीछे-पीछे मानवों का एक समूह रोते हुए आ रहे थे चौथा दृश्य एक भ्रमणशील सन्यासी को देखा उसके मुख मण्डल पर शान्ति और चमक स्पष्ट प्रकाशित हो रहा था। चौथे दृश्य ने गौतम को अधिक प्रभावित किया। ये चारों दृश्य हदमवंश धारी देवताओं का था इसके माध्यम से देवतागण गौतम के वास्तविक कर्तव्य को अवजात कराए। गौतम 29 वर्ष की आयु में समस्त सुख-सुविधाओं को त्याग कर एक सन्यासी तरह इधर-उधर 7 वर्षों तक भटकते रहे अन्तमें उन्होंने मगध जनपद के अरूकेला में निरजना नदी के तटपर एक पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर तपश्चर्या में लगे रहे और वही पर एक सेनानी की पुत्री सुजाता के हाथ से भोजन करने के बाद वे पुनः समाधि हो गये और सात दिन-रात विना बिघ्न तप किया। आठवें दिन वैशाख पूणिमा के दिन उन्हें
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy