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________________ 92 श्रमण-संस्कृति चार अर्थ सत्य (1) दुःख (2) दुःख समुदाय (3) दुःख निरोध (4) दुःख निरोध गामिनी प्रतिपद।। (1) सम्यक दृष्टि - का आशय है नीर-क्षीर विवेकी दृष्टि अर्थात् चार __ आर्थ सात्यो की सही परख और समझ। (2) सम्यक वचन - असत्य छोडकर सदा सत्य बोलना। (3) सम्यक संकल्प - भौतिक वस्तुओं तथा दुर्पभावना का त्याग की प्रतिज्ञा करना। (4) सम्यक कर्मान्त - सदैव सत्यकर्म करना। (5) सम्यक आजीव - ईमानदारी और नैतिकता के माध्यम से आजीविका कमाना। (6) सम्यक व्यायाम - शुद्ध, शुभ एवं उचित विचार ग्रहण करना। (7) सम्यक स्मृति - मन वचन, तथा कर्म की प्रत्येक क्रिया प्रति सचेत रहना। (8) सम्यक समाधि - चित्त की एकाग्रता पर ध्यान देना। दस शील (1) अहिंसा (2) सत्य (3) अस्तेय चोरी न करना (4) अपरिग्रह - अधिक संग्रह न करना। (5) ब्रह्मचर्य-व्यभिचार न करना। (6) नृत्य गानादि का त्याग करना। (7) सुगध मालादि का त्याग (8) असमय में भोजन न करना। (9) कोमल विस्तर का त्याग करना। (10) कामिनी कंचन का त्याग (कुविचारों का) तथा सम्पूर्ण जगत में ध्वनित हो रहा है। बुद्धम् शरणम् गच्छामि धम्मम् शरणम् गच्छामि संघम शरणम् गच्छामि
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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