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________________ 292 श्रमण-संस्कृति भाषाओं का ही प्रयोग किया। इस प्रकार तत्कालीन लोक भाषाओं के विकास में जैन धर्म का बहुत बड़ा योगदान है। उस युग की बोलचाल की भाषा को जैन साधुओं ने साहित्यिक रूप दिया। स्वयं महावीर जी ने अर्द्ध मागधी उपदेश दिये थे। जैनियों का विपुल साहित्य अपभ्रंश भाषा में रचित है। यह अपभ्रंश एक ओर संस्कृत और प्राकृत को परस्पर जोड़ती है तो दूसरी ओर आधुनिक भाषाओं को परस्पर मिला देती है। अतएव भाषा विज्ञान की दृष्टि से अपभ्रंश बहुत महत्वपूर्ण है। भारत के दक्षिण प्रदेशों की विभिन्न भाषाएं भी जैन प्रभाव से युक्त हैं। ईसा पूर्व चौथी सदी के अंत में अन्त में आचार्य भद्रबाहु के नेतृत्व में जो जैन समूह मैसूर चला गया था उसने वहाँ की लोक भाषाओं को अपनाकर धर्म प्रचार किया और ग्रन्थ की रचना की। इस प्रकार कन्नड़ भाषा को प्राचीनतम् साहित्यिक रूप जैनों ने ही दिया। प्रारम्भिक तमिल साहित्य के निर्माण में भी जैन मुनियों का बहुत योगदान है। ____ धर्म के क्षेत्र में जैन धर्म की सर्वाधिक महत्वपूर्ण देन अहिंसा का सिद्धान्त है। लोक में यह धारणा प्रचलित है कि बौद्धों ने साहित्य को सर्वाधिक उन्नत किया, किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से देखने पर यह प्रचलित धारणा भ्रान्त सिद्ध होती है। धर्म के क्षेत्र में अहिंसा के सिद्धान्त को जन्म देने वाले 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे और उसको चरम सीमा पर ले जाने का श्रेय महावीर स्वामी को है। जैन धर्म के आचार्यों ने भारतीय दर्शन के क्षेत्र में भी अनेक महत्वपूर्ण स्थापनायें की। बौद्धों के सदृश कर्मवाद एवं पुर्नजन्मवाद के विशिष्ट सिद्धान्त तो जैन दार्शनिकों ने प्रस्तुत किए ही किन्तु स्याद्वाद और अनेकान्तवाद जैन दार्शनिकों की विलक्षण स्थापनाएं हैं। स्याद्वाद के अनुसार प्रत्येक कथन या दृष्टिकोण में आंशिक सत्य होता है। अतः सम्पूर्ण सत्य की प्राप्ति के लिए उन सभी दृष्टिकोणों का अध्ययन परम् आवश्यक है। इसी प्रकार अनेकान्तवाद के अनुसार आत्मा एक नहीं वरन् अनेक है। जैनियों के अनुसार जिस वस्तु का अस्तित्व होता है, वह केवल अपने पदार्थ की दृष्टि से स्थायी होती है। परन्तु उसके गुण उत्पन्न होते हैं और नष्ट होते हैं। पदार्थ का अस्तित्व पदार्थ के रूप में ज्यों का त्यों बना रहता है और उसका आकृति और गुणों में परिवर्तन होता
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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