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________________ भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान 291 बाह्य आघातों से टूटी अथवा नष्ट नहीं हुई। विश्व की अन्य संस्कृतियां विदेशी आक्रान्ताओं से पददलित होकर लुप्त हो गयी थीं, किन्तु भारतीय संस्कृति अपने इस गुण के कारण विभिन्न प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उपयुक्त परिवर्तन पूर्वक जीवित रहती रहीं । इन परिवर्तनों के कारण भारतीय धर्म, समाज, आचार विचार तथा दर्शन आदि की स्थिति में सूक्ष्म अन्तर तो अवश्य आता रहा किन्तु मूलरूप नष्ट नहीं हो सका । विद्रोह, बगावत या क्रान्ति कोई ऐसी चीज नहीं होती जिसका विस्फोट अचानक होता हो। घाव फूटने से पहले बहुत काल तक पकता रहता है। विचार भी चुनौती लेकर खड़े होने से पहले वर्षों तक अर्द्धजाग्रत अवस्था में फैलते रहते हैं। वैदिक धर्म पूर्ण नहीं था, इसका प्रमाण उपनिषदों में ही मिलने लगा था और यद्यपि वेदों की प्रामाणिकता में उपनिषदों ने संदेह नहीं किया । किन्तु वैदिक धर्म के काम्य स्वर्ग को अयथेष्ठ बताकर वेदों की एक प्रकार की आचाचना उपनिषदों ने ही शुरू कर दी थी । वेद सबसे अधिक महत्व यज्ञ को देते थे । यज्ञों की प्रधानता के कारण समाज में ब्राह्मणों का स्थान बहुत प्रमुख हो गया था। इन सारी बातों की समाज में आलोचना चलने लगी और लोगों को यह संदेह होने लगा कि मनुष्य और उसकी मुक्ति के बीच में ब्राह्मण का आना सचमुच ही ठीक नहीं है । आलोचना की इसी प्रकृति ने बढ़ते-बढ़ते आखिर ईसा से 600 वर्ष पूर्व तक आकर वैदिक धर्म के खिलाफ खुले विद्रोह को जन्म दिया । जिसका सुसंगठित रूप जैन और बौद्ध धर्मों में प्रकट हुआ । जिस प्रकार बौद्ध धर्म ने भारतीय संस्कृति को परिपुष्ट किया, उसी प्रकार भारतीय संस्कृति ने जैन धर्म का योगदान भी अपूर्व है । साहित्य, धर्म, दर्शन, कला, आदि क्षेत्रों में जैन धर्म ने अपनी स्पष्ट छाप छोड़ी है जिसका विवरण निम्नलिखित हैं - ब्राह्मणों के धार्मिक प्रचार और साहित्य सृजन की भाषा संस्कृत थी । बौद्धों ने संस्कृत के स्थान पर पाली भाषा को अपनाया । सम्पूर्ण प्रारम्भिक बौद्ध साहित्य पाली भाषा में उपनिबद्ध है। परवर्ती युग में बौद्ध दार्शनिकों और प्रचारकों ने संस्कृत को भी अपना लिया । किन्तु जैन आचार्यों ने धर्म प्रचार के लिए और ग्रन्थ लेखन के लिए विभिन्न प्रदेशों में प्रचलित तत्कालीन लोक
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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