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________________ 293 भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान रहता है। आत्माएं पदार्थ से भिन्न होती हैं और जिस शरीर में वे वास करती हैं उसके अनुसार उनका आकार बदलता रहता है। आत्माएं जब तक इस संसार में रहती हैं तब तक वे पुनर्जन्म के अधीन रहती हैं परन्तु जब वे मुक्त हो जाती हैं, तो वे पूर्णता को प्राप्त हो जाती हैं। जैन दर्शन के अनेकान्तवाद से भारतीय संस्कृति की सहिष्णुता और उदारता की प्रवृत्ति परिपुष्ट हुई। विभिन्न ललित कलाओं के क्षेत्र में जैन धर्म ने भारतीय संस्कृति को अनूठे उपहार दिये हैं। जैन धर्मावलम्बियों ने अपने तीर्थंकरों की स्मृति में स्तूपों प्रस्तर वेदिकाओं तथा अलंकृत तोरणों का प्रचुर निर्माण किया जिनसे वास्तु कला एवं स्थापत्यकला की अत्यधिक उन्नति हुई। पहाड़ों की चट्टानें काटकर जैन मंदिरों का निर्माण किया गया। ऐसे मंदिरों में उड़ीसा का हाथी गुम्फा नाम से प्रसिद्ध गुहा मंदिर अत्यधिक आकर्षक है जिसका निर्माण ईसा पूर्व दूसरी शती में हुआ था। पार्श्वनाथ पर्वत, गिरनार, तथा पावापुरी आदि स्थानों में विभिन्न युगों के अनेक मंदिर और स्मारक निर्मित हैं। राजस्थान में भी स्थल-स्थल पर जैन मंदिर अपने अलंकृत तोरणों और छत से लटकते संगमरमर के फानूसो की अत्यन्त बारीक खुदाई और जाली के काम के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। वस्तुतः दिलवाड़ा मंदिरों में प्रवेश करके वे इहलोक की रचना ही नहीं जान पडते। इसी प्रकार रणकपुर के मंदिर अपने संगमरमर के अलंकृत स्तम्भों के कारण पर्यटकों के विशेष आकर्षक केन्द्र हैं। चित्तौड़ का चौकोर स्तम्भ भी जैन धर्मावलम्बियों के कला प्रेम का साक्षी है। इन सभी में अलंकृत स्थापत्य कला शिल्प अपनी सर्वोच्च प्रतिष्ठा में है। मूर्तिकला को भी जैनों ने पर्याप्त प्रश्रय दिया। मध्य भारत और बुन्देलखण्ड 11वीं तथा 12वीं शती की जैन मूर्तियों से भरे पड़े हैं। मैसूर में श्रवणबेलगोला, में बाहुबली की 70फीट उंची मूर्ति पर्वत शिखर पर अवस्थित है। गंग नरेश राजमल्ल चतुर्थ के मंत्री तथा सेनापति जैन चामुण्डराय ने 10वीं शती के लगभग अन्त में इसे स्थापित कराया था। यह सम्पूर्ण मूर्ति विशाल ग्रेनाइट चट्टान में से काट कर बनायी गयी है और देखने मात्र से श्रद्धा तथा विस्मय उत्पन्न करती है। जैनों ने चित्रकला को भी पर्याप्त विकसित किया, जैन आचार्यों की
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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