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________________ जैन धर्म का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव जागृत कर सद्भावना के पुष्प खिलाता है और बिखेरता है उस स्वानुभूति को, जो अन्तर में ऋजुता, सरलता और प्रशान्त वृत्ति को जन्म देती है। वस्तुतः हम न हिन्दू हैं, न मुसलमान, न जैन हैं न बौद्ध, न ईसाई हैं, न यहूदी, हम तो पहले मानव हैं और धार्मिक बाद में। व्यक्ति यदि सही इन्सान नहीं बन सका तो वह धार्मिक कभी नहीं हो सकता यही जैन संस्कृति की अप्रतिम विशेषता है। ज्ञात है कि इन्सानियत को मारने वाली, इन्सान में निहित कुप्रवृत्तियाँ और भौतिकवादी वासनायें हैं जो युद्ध और संघर्ष को जन्म देती हैं। व्यक्ति और राष्ट्र के मध्य कटुता की अभेद्य दीवालें खड़ी कर देती हैं। धर्म तो वस्तुतः दुःख के मूल कारण रूप आसक्ति को दूर कर असाम्प्रदायिकता को प्रस्थापित करता है, नौतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को नयी दृष्टि देता है और समतामूलक समाज की रचना करने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, हरिभद्र आदि जैनाचार्यों ने तो धर्म के उस रूप को प्रस्तुत किया जिसमें मानवता को प्रस्थापित कर धर्म को ईश्वर-विश्वास से पृथक् कर दिया गया था। ___ जैन धर्म अर्हत् धर्म है, उसकी संस्कृति वीतरागता से उद्भूत हुई जहाँ कर्मों को नष्ट कर, उनकी निर्जरा कर मोक्ष प्राप्त करना मुख्य उद्देश्य रहता है। इसलिए जैनाचार्यों ने अपनी संस्कृति के मूल में धर्म को संयोजित किया है और उसे जीवन के हर पक्ष से जोड़ने का प्रयत्न किया है। जैन सांस्कृतिक परम्परा में आत्म स्वातन्त्र्य की घोषणा में व्यक्ति की स्वतंत्रता उद्घोषित है। वह स्वयं अपने कर्म का निर्माता और भोक्ता है। आत्मा ही परमात्मा है यह क्रान्तिकारी उद्घोषणा जैन धर्म की निराली है, ईश्वर से मनुष्य को इतनी स्वतंत्रता देना जैन धर्म की अपनी विशेषता है। __ इसके अनुसार संसार की सृष्टि निमित्त उपादान कारणों से होती है। ईश्वर सृष्टि कारक नहीं है। व्यक्ति स्वयं ही कर्ता और भोक्ता है। उसकी निवृत्ति और प्रवृत्ति एक साथ चलती है। सबसे बड़ा शत्रु यदि कोई है तो इन्द्रियाँ हैं, कषाय हैं जिन्हें जीतने के लिए व्यक्ति को सदैव संघर्ष करना पड़ता है, तभी धर्माचरण हो पाता है, विवेक जाग्रत हो जाने पर सांसारिक सुख यथार्थ में सुखाभास लगने लगते हैं उनमें झूठा आनन्द दिखाई देने लगता है।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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