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________________ 25 जैन धर्म का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव सीमा श्रीवास्तव भारतीय संस्कृति के अनेक अध्येताओं ने इस मत का प्रतिपादन किया है कि जैन धर्म और संस्कृति प्राक्वैदिक हैं। जैन संस्कृति में इन्होनें देश काल की परिस्थितियों के अनेक तत्वों का संस्कार तथा बहिष्कार करते हुए अपने तात्विक तथा आध्यात्मिक रूप में अपने समकालीन तथा परवर्ती संस्कृतियों को भी प्रभावित किया। वस्तुतः विशुद्ध मानवतावाद पर अवलम्बित भारतीय संस्कृति का कदाचित् यह प्राचीनतम धर्म है जिसने अहिंसा और अपरिग्रह का अद्वितीय एवं अनुपम सन्देश समस्त मानव जगत को प्रदान किया। समतावाद, अनेकान्तवाद या सर्वोदय, कर्मवाद, आत्मस्वान्त्र्य आदि मानवीय सिद्धान्तों को स्थापित कर जैनियों ने जातिवाद और वर्गभेद की अभेद्य दीवारों को खण्डित करके सम्पूर्ण मानव समाज में एक नवीन चेतना का संचार किया है। वस्तुतः भारतीय संस्कृति के कला आदि समस्त क्षेत्रों में अपना अतुलनीय अवर्णनीय योगदान जैन धर्म ने दिया, भारतीय संस्कृति को जैन, धर्म के अवदानों का निम्नवत विन्दुओं में उल्लेख किया जा सकता है। जैन धर्म द्वारा मानवोचित गुणों का विकास कर सामाजिकता को प्रस्थापित करने का कार्य किया गया। वस्तुतः धर्म आन्तरिक अनुभूति को सबल बनाये रखते हैं। बुद्धि, भावना और क्रिया को पवित्रता की ओर ले जाते हैं। वस्तुतः यह मात्र रूढ़ियों और रीति-रिवाजों का परिपालन मात्र नहीं है वह जीवन से जुड़ा सर्जनात्मक सर्वदेशी तत्त्व है जो प्राणिमात्र को वास्तविक शान्ति का सन्देश देता है, अविद्या और मिथ्याज्ञान को दूर कर सत्य और न्याय को प्रगट करता है, तर्कगत आस्था और श्रद्धा को सजीव रखता है, बौद्धिकता को
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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