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________________ 106 श्रमण-संस्कृति रखा तथा सभी जाति की नारियों को संघ में प्रवेश का अधिकार देकर ब्राह्मण धर्म की इस अवधारणा को अमान्य सिद्ध कर दिया कि नारी अध्यात्मिक सत्य को प्राप्त करने की क्षमता नहीं रखती है। बौद्ध आगमों के काल तक वैदिक परम्परा के अनुयायियों की दृष्टि में पुत्र एवं पुत्री के बीच पर्याप्त भेद स्थापित हो गया था। संयुक्त निकाय में उपलब्ध एक घटना से उस समय पुत्री जन्म पर होने वाली प्रतिक्रिया ज्ञात होती है - एक बार कौशल नरेश प्रसेनजित भगवान बुद्ध के पास गए थे। उसी समय किसी व्यक्ति ने पुत्री जन्म की सूचना उन्हें दी जिससे वह खिन्न हो गए, जिसे देखकर महात्मा बुद्ध ने उन्हें सांत्वना दी और कहा कि - 'जो वीर पुत्र उत्पन्न होते हैं उनकी जननी स्त्रियां ही हैं, वही स्त्रियां पति, श्वसुर एवं सास की सेवा करती हैं, अतः इनसे कभी भी घृणा नहीं करनी चाहिये। उपर्युक्त घटना से दो बातें स्पष्ट होती हैं, प्रथम यह कि वैदिक परम्परा के अनुयायियों में व्याप्त पुत्री के जन्म पर असन्तोष की भावना महात्मा बुद्ध के समय तक अविच्छिन्न रूप में चली आई थी जिसके मूल में प्रमुख कारण सामरिक दृष्टिकोण का था तथा द्वितीय कारण यह था कि पुत्र एवं पुत्री में इस प्रकार भेदभाव भरी नीति का महात्मा बुद्ध ने विरोध किया। उन्होंने जनसामान्य को यह समझाया कि जिस सामरिक दृष्टिकोण के कारण पुत्र को महत्व दिया जाता है उसका अस्तित्व परोक्ष रूप से पुत्री में विद्यमान है। महात्मा बुद्ध ने कन्या को महत्व प्रदान करते हुए उनमें स्वावलम्बन एवं स्वाभिमान की भावना उत्पन्न करने वाले सिद्धान्तों का प्रचार किया। अतः स्पष्ट है उनमें कहीं पितृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए पुत्र प्राप्ति आवश्यक है - इस बात की उपेक्षा की गई है। पारिवारिक जीवन में माता द्वारा कन्याओं के हृदय में धार्मिक भावना उत्पन्न करने की प्रथा बौद्धागम में पाई जाती है क्योंकि बौद्धयुग तक समाज में नारियों के प्रति उत्तर वैदिक कालीन दृष्टिकोण विद्यमान था। अतः माता के लिए यह स्वाभाविक था कि वह अपनी पुत्रियासे को धार्मिक वातावरण से प्रभावित कर दे जिससे विपत्तिकाल में पुत्रियां धार्मिक जगत का आश्रय ले विपत्ति से मुक्त हो सकें। कन्याओं के जीवन में धार्मिक बुद्धि के विकास से
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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