SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्ध धर्म का तत्कालीन स्त्रियों के धार्मिक अधिकार पर प्रभाव किन्तु इन्हीं ब्राह्मण ग्रंथों में नारी के धार्मिक अधिकारों के हनन का भी उदाहरण प्राप्त होता है अर्थात उनके दूसरे पक्ष को भी उजागर किया गया है जैसे उत्तरवैदिक काल के परवर्ती युग में धार्मिक कृत्यों की सम्पन्नता में नारी का स्थान पुरोहितों ने ग्रहण कर लिया। इसका प्रभाव स्पष्टतः पुत्री को मिलने वाली शिक्षा पर पड़ा। पुरोहित पत्नी द्वारा की जाने वाली यज्ञ विधि को, अग्नि प्रज्ज्वलित करने वाला पुरोहित करने लगा इससे पत्नी का अधिकार क्रमशः कम होने लगा और समाज में उनका महत्व भी कम होने लगा - सद्धस्मतत्पुरा जायेव हविष्कृदुपतिष्ठति । तदिदं पतहिं य एव कश्चनोपतिष्ठति । । " 105 कालांतर में परिस्थितियां बदलती गयी, तदुपरांत न केवल उनका उपनयन एवं ब्रह्मचर्य जीवन क्रमश: बाधित होता गया । 12 बल्कि वैदिक ज्ञान एवं यज्ञीय अधिकारों से भी उन्हें वंचित कर दिया गया । याज्ञवल्क्य का कथन है कि स्त्रियों का उपनयन संस्कार नहीं होना चाहिये । वस्तुतः जब उनका उपनयन संस्कार प्रतिबंधित होने लगा तब उन्हें वैदिक ज्ञान और धार्मिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया तथा शिक्षा की दृष्टि से तो नारी की स्थिति शूद्रों जैसी हो गयी थी। 3 इस प्रकार वैदिक एवं उत्तर वैदिककालीन नारियों की स्थिति की समीक्षा से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि बौद्धकाल के पूर्व सम्पूर्ण समाज की विस्फोटक स्थिति बन गई थी। जातक कथाओं एवं अन्य बौद्ध साहित्य के आधार पर बौद्धकालीन नारियों की स्थिति पर विचार किया जा सकता है। बौद्ध धर्म का आविर्भाव ब्राह्मण धर्म के विरूद्ध एक प्रतिक्रिया स्वरूप था । अतः अन्य सभी धार्मिक अन्धविश्वासों के साथ ही ब्राह्मण धर्म की यह धारणा कि नारी प्रत्येक क्षेत्र में पुरुष से हीन है, महात्मा बुद्ध द्वारा निर्मूल घोषित कर दी गई। इससे महात्मा बुद्ध के उदारवादी दृष्टिकोण का पता चलता है। उन्होंने यह घोषणा की, कि प्रत्येक व्यक्ति अपने पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार जन्म पाता है । 14 इस घोषणा ने इस बात पर सीधा आघात किया कि मोक्ष प्राप्ति के लिए पुत्र का होना अनिवार्य है। द्वितीयतः महात्मा बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति का मार्ग नारियों के लिए भी
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy