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________________ बौद्ध धर्म का तत्कालीन स्त्रियों के धार्मिक अधिकार पर प्रभाव 107 अत्यधिक परिवर्तन हुआ। महात्मा बुद्ध के नूतन एवं स्वतन्त्र दृष्टिकोण से प्रभावित समाज में कन्या को सम्मान मिलने लगा था तथा वह माता-पिता के लिए कष्टों का स्रोत नहीं रह गई थी!18 नारियों को सक्रिय रूप से धार्मिक साधना में भाग लेने की अनुमति मिलने पर ही कन्याओं में आत्म निर्भरता की भावना उदित हुई। अतः पुत्री का जन्म अमंगलकारी नहीं माना जाता था कि उनकी शिक्षा पर पुत्रों के समान ध्यान दिया जाता था। बौद्धागमों में 'पुत्ता' शब्द उपलब्ध होता है जिसका अभिप्राय बिना किसी लिंगभेद के संतान मात्र से है बौद्ध साहित्य में उत्तरोत्तर कन्या का महत्व वृद्धिगत दृष्टिगोचर होता है। उत्तरकालीन ग्रन्थों में मनुष्यों को कन्या के जन्म पर हर्षित होते हुए पाते हैं। थोरीगाथा के अनुसार उव्विरी अपनी कन्या की मृत्यु पर अत्यन्त दुःखित थी। उस समय सुन्दर कन्याएं तो तो सम्मान की पात्र बन गई थी। विवाह के अवसर पर माता-पिता भावी जामाता से अपनी कन्या का शुल्क लिया करते थे। ऐसा उल्लेख थेरीगाथा से प्राप्त होता है। बौद्धयुग के प्रारम्भिक काल तक नारी शिक्षा समाप्तप्राय सी हो चुकी थी। नारी को विवाह के पूर्व या पश्चात् जैसा कि कहा गया है कि केवल कुशल गृहणी बनने की शिक्षा दी जाती थी। उन्हें पतिकुल के योग्य शिक्षा दे दी जाती थी। स्त्रियों को जीविकोपार्जन की शिक्षा नीं दी जाती थी। कन्याओं को यह सिखाया जाता था कि वे पति के पूज्य माता-पिता एवं श्रमण ब्राह्मणों का आदर करें तथा अभ्यगतों को आसन एवं उदक देकर सम्मानित करें आशय यह है कि उस समय शिल्प एवं कला का ज्ञान पुत्र को तथा पति कुल के अनुरूप आचरण करने में दक्षता पुत्री के भावी जीवन को सुखी बनाता था। अतः कन्या के प्रति व्याप्त उपेक्षा एवं असन्तोष व्यवहार की बौद्धागमों में प्रतिक्रियात्मक प्रवृत्ति पाई जाती है। महात्मा बुद्ध के भिक्षुणी संघ ने इस दिशा में क्रान्तिकारी कार्य किया। सभी भिक्षुणी विहार महिला शिक्षणशाला के समान हो गए थे। वहाँ प्रव्रजित एवं गृहस्थ दोनों प्रकार की महिलाएं शिक्षा प्राप्त करने लगी थीं। वैदिक काल में विदुषी नारियों ने वैदिक ऋचाओं की रचना में महत्वपूर्ण भाग लिया था। बौद्ध भिक्षुणियों ने इस परम्परा को धार्मिक गीतों द्वारा पुनर्जीवित किया। इन
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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