SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 16 बौद्ध धर्म का तत्कालीन स्त्रियों के धार्मिक अधिकार पर प्रभाव प्रवेश कुमार श्रीवास्तव स्त्रियों को प्राचीन भारतीय समाज में बड़े ही श्रद्धा एवं सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। वह पुरुष की 'शरीरार्द्ध' और 'अर्धांगिनी' मानी गयी तथा उसके जीवन में स्त्री का महत्व 'श्री' एवं लक्ष्मी' के रूप में, वह उसके जीवन को सुख और समृद्धि से दीप्त और पुंजित करने वाली कही गई। वह श्वसुर गृह की साम्राज्ञी मानी जाती थी। ऋग्वेद में दम्पत्तियों द्वारा यज्ञीय कार्य करने का उल्लेख मिलता है। चूंकि स्त्री और पुरुष यज्ञ रूपी रथ के जुड़े हुए दो बैल माने गये थे। अतः यज्ञ में उसकी उपस्थितिक अनिवार्यता पत्नी संज्ञा को चरितार्थ करता है। पति की अनपुस्थिति में वह धार्मिक कृत्य कर सकती थी। जबकि अकेला पुरुष यज्ञ के अयोग्य समझा जाता था। ___यद्यपि उत्तरवैदिक काल के उपरांत धार्मिक जटिलताएं क्रमशः बढ़ते जाने के कारण ज्यादातर अनुष्ठान पुरुष ही करने लगे थे; तथापि उसमें पत्नी की उपस्थिति स्वीकार की जाती रही। ऐतरेय ब्राह्मण साहित्य से विदित होता है कि यद्यपि कुछ धार्मिक कार्य पत्नी की उपस्थिति के बिना भी सम्पन्न होने लगा था, जो निःसन्देह बदलते सामाजिक परिवेश में हो रहे उनके धार्मिक अधिकारों के ह्रास को चिह्नित करता है। किन्तु अश्वमेध, वाजपेय तथा राजसूय जैसे यज्ञों एवं सामान्य धार्मिक अनुष्ठानों में उनकी उपस्थिति अब भी अनिवार्य थी। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार उन्हें वैदिक साहित्य पढ़ने और यज्ञीय कार्य करने सम्बन्धी समस्त अधिकार प्राप्त था।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy