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________________ धर्मपरीमागे घरनां सूत्र ॥ ए ॥ अढार दोषथी वेगला, वीतराग गुणवंत ॥ तेहने पूज्ये पामीए, सुगति सुख अनंत ॥ १० ॥ पवनवेग तुमे सांजलो, कार्तिकेय वृत्तांत ॥ जिन॥१५॥ वचने जेम नाखीयु, एक मना सुणो शांत ॥ ११ ॥ . ढाल आठमी. सुविवेक विचारी जुर्ग, जुर्म वस्तु स्वनाव-ए देशी. कार्तिकपुर नगर नकुंजी, श्रगनिश्श नामे जे राय ॥ विमलमति ते नामनीजी, उमीया सरखी काय ॥ पवनवेग जाणजो जैन विचार, करजो मिथ्यात परिहार, पवKalनवेग ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ कृतिका पुत्री रूयमीजी, रूपे रंन समान ॥ अष्टानिका INवत याचरीजी, महोत्सव नृत्यज ग्यान ॥ प॥२॥ श्रावक साथे सह घणाजी. राजा गयो वन मांहीं ॥ नवण कीयां जिनवर तणांजी, उपवास अष्टमी त्यांहीं ॥ प० ॥३॥ कार्तिका गंधोदक लेजी, पिता नणी आवी ताम ॥ तात वांदो ए निरमबुंजी, शेष लेजो जिन स्वाम ॥ १०॥॥ शरीर देखी पुत्री तणुंजी, रूपे मोह्योरे राय . C१॥ कामबाणे करी तामीयोजी, नृपचित्त विह्वल थाय॥प ॥५॥राजसजाए श्रावी करीजी, खट् दर्शन तेमी लोक ॥शैव सांख्य बौध पूढीयाजी, जट्ट सन्यासीना थोक ॥१०॥६॥मुज
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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