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मंदिर रतन उपज्युंजी, कहेजो केर्नुरे तेह ॥ प्रत्येक पंच दरशनी कहेजी, राजा तj होय एह ॥ ५० ॥ ७॥ मुनि पूठ्या जिन दरशनीजी, कहो जति केहनो स्त्रीरत्न ॥ मुनिवर बोल्या नृप सुणोजी, जैन मारग कह्यां यत्न ॥ प० ॥ ॥ चौद रतन विचार घणोजी, सात चेतन शुन होय ॥ अचेतन सात जाणजोजी, घर उपन्यु स्त्रीरतन जोय ॥ १० ॥ ए॥ वचन सुणी नूप कोपीयोजी, निंद्या तिहां मुनि तेह ॥ देशे न रहे श्रम तणेजी, जाजो सहु जैन बेह ॥ १० ॥ १० ॥ मुनिवर तिहांधी चालीयाजी, दक्षिण देश मोकार ॥ पापी राजा परणीयोजी, पुत्री कीधी घर नार ॥ प० ॥ ११॥ अग्नीश कामांधो थकोजी, पुत्रीशु जोगवे नोग ॥ गर्न रह्यो कृतिका उदरेजी, जनक तणे संजोग ॥ १० ॥ १५ ॥ पूरे मासे सुत जनमीयोजी, कार्तिकेय तेहy नाम ॥ रूपे सहु लोक रंजीयाजी, महोत्सव कीधो श्रनिराम ॥ ५० ॥ १३ ॥ पुत्री जणी एक निरमलीजी, वीरमति नामे सार ॥ रूप सौनागे आगलीजी, कार्तिकेय सम मनोहार ॥ प० ॥ १४ ॥ क्रौच नाम नरपति नलोजी, रोहीम नयरनो राय ॥ वीरमती परणावी तेहनेजी, महोत्सव करी उगाह ॥ प० ॥१५॥ क्रौच परणी निज गामे गयोजी, वीरमतीने लेश ताम ॥ कार्तिकेय जणवा मूकीयोजी, गुरु पासे पढी शास्त्र जाम