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________________ | सातमी ढाल बहा खंमनीरे, सुणजो सहु नर नार ॥ म० ॥ रंगविजय शिष्य एम कहेरे, नेमने हर्ष अपार ॥ म० ॥ मा० ॥ १७ ॥ उदा. गणेश कर्यो देमेलनो, केम श्रव्यो जीव मांही ॥ सप्त धात केम नीपजे, समजावो मुज यांही ॥ १ ॥ मनोवेग कहे सांजलो, गणेश संबंध अधिकार ॥ जिनशासन मतमां घणो, सुणजो ते सुविचार ॥ २ ॥ अयोध्या नगरी अनोपम कही, रामचंद्र नामे राय ॥ तेनो हस्ती मद जर्यो, मुनि पुंठे मारण धाय ॥ ३ ॥ समीपे आव्यो जेदवे, मुनि देखी उपसंत ॥ पूरव जव मुनीश्वरे कह्यो, सुणतां उपनी खंत ॥ ४ ॥ जातिस्मरण गज उपन्यो, वैराग पाम्यो अजिराम ॥ मुनि पासे व्रत उंचर्या, द्वादश जिनमत ताम ॥२॥ फास आहार करे निरमलो, फासु जल पीए ताम ॥ लोक मांहीं जस वाप्यो घणो, बेठो रहे एक ठाम ॥ ६ ॥ धर्मथी सामी सहु कर्या, थाप्यो विनायक नाम ॥ संयम पाली निरमलो, गज मरी देवलोक वाम ॥ ७ ॥ ते लोक मांहीं व्यापीयो, गणेश विनायक नाम ॥ विपरीत रूप करी सहु, पूजे राखी धाम ॥ ८ ॥ सिद्धि बुद्धि नामे नारी दो, लख लाज दो पुत्र ॥ मूढ मिथ्याति मानवी,
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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