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________________ मार्यो तुमे, नहीं बोवू हवे तुमशुं अमे ॥ ४॥ पुत्र हत्या लागी तुज हाथ, ए अघ-II लाटतुं की, काज ॥ पुत्र हत्यारा घरथी जाय, काला मुखवालो केम थाय ॥५॥ जो जीवंतो करशो एह, तो तुमशुं धरीशुं स्नेह ॥ ईश्वर तव आवी जोये बार, धम दीवं एकलुं तेणी वार ॥ ६॥ खेत्रपालने तव दीधी शीख, जो लावो गणपतिनुं शीश ॥ नाखेत्रपाल जोवे जग माहीं, नवि देखे मस्तक वली कयांहीं ॥ ७॥ गम गम जोयु | ते मंक, नवि दीसे गणपतिनुं तुम ॥ मुआ हस्तीनी आणी सुंढ, चोडी गणेश तणे जे रंग ॥ ७॥ गजवदन हुवो तसु नाम, जीवतो हुवो तेहज ताम ॥ मिथ्याति सहा पूजे लोक, एह वचन साचां के फोक ॥ ए ॥ विप्र सांजलो एहज साच, अमारी। नहीं मानो तुमे वाच ॥ आपणुं वचन आपणने गमे, बाकी सहु ते फोके धमे ॥१॥ शूज अन्य अग्राह्य एम कहे, घृत पक ते सहुने ग्रहे ॥ हिजवर सहु ते कांखा थया, मौन धरीने वलता रह्या ॥१९॥ ब्राह्मण एक बोल्यो वली एम, धूर्त बेहु दीसो बो तेम॥ |तुमे कह्या ते मान्या सहु, एक संदेह ने अमने बहु ॥ १२ ॥ कोठ उपरथी खाधा मुंग, हेवं केम धरायुं रंग ॥ पर खाय ने पर केम ध्राय, एह वात केम घटती थाय |॥ १३ ॥ मनोवेग तव बोल्यो वाण, सांजलो वामव तुमे अजाण ॥ श्ह लोके विप्र
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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