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________________ खंग ६ - धर्मपरीनाजोजन करे, परलोके पूर्वज तृप्ति धरे ॥ १४ ॥ मातपिता सहु मुवा घणां, चोराशी लाख जोनिए जएयां ॥ काल घणो हुवो ने तेह, न जाणीए अवतरीया केह ॥ १५॥ १५३॥ अर्ध पदना पंदर दीस, संवबरी बमासी प्रीस ॥ ब्राह्मण सगां जमे सहु, ते पामे पूवज वली बहु ॥ १६ ॥ पितर नवांतर पाम्या जेह, विप्र सगां जमतां पामे तेह ॥ तो मुज माथु कोठां खाय, मारुं पेट कहो केम न जराय ॥ १७ ॥ ही ढाल खंम। हा तणी, एहवी वात ते हिजवर सुणी ॥ रंगविजयनो शिष्य एम कहे, नेमविजयनी वात एम रहे ॥ १७ ॥ उहा. ब्राह्मण सहु हाथ जोमीया, बोले वचन श्रनाथ ॥ जीत्यो जीत्यो मुखथी वदे, हार्या अमे जगनाथ ॥१॥ तुम साथे अमे बोलतां, नथी पुरवतो कोय ॥ साचा संघाते केम घटे, स्मृति पुराणे होय ॥२॥ वाद जीती वनमां गया, मित्र बेहु आणंद ॥ पवनवेग कहे नाइ सुणो, मिथ्या पुराण कह्यो वृंद ॥३॥ ते में खोटां जाणीयां, जिनवचननो नहीं नेद ॥ तेह कथा कहो निरमली, मिथ्या कथा करो बेद ॥४॥ ॥१३॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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