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________________ धर्मपरिव माहे रोऊमा जेम जीवरे, ते सरिखा अमे ढुं सदैवरे ॥५॥ द्विजवर तव कोपा लानल थाएरे, जो नवी जाणो तुमे बेहु कांएरे ॥ तो घंटानो केम कीधो नादरे, मेरी वजाडी पाड्यो तुमे सादरे ॥६॥ गर्व घणो आपी मन मांहीरे, ऊंचा चढी बेग बो उछांहीरे ॥ अति घणो कीधो तुमे अन्यायरे, नरम थर बोलो हवे न्यायरे ॥॥ मनोवेग कहे अमे एमरे, नाद कीयो ते कौतुक जेमरे ॥ ते माटे तमे सहु मली श्राव्यारे, तुमने अमे बे दिलमा नाव्यारे ॥ ॥ जो न गमे सिंहासन पर बेगरे, तो श्रमे उतरी बेसुं देगरे । रीस न करो अमने तुमे देवरे, ज्यांथी श्राव्या जाशुं ततखेवरे ॥ ए॥ राजी थश्ने विप्र कहे नारे, रूप देखीने कहीए चित्त लारे ॥ वस्त्र थानूषणे दीसो ताजारे, मीगबोला मोटी माजारे॥ १० ॥नीच काम कां करो कुमाररे, खड इंधणना थाणो नाररे ॥ साच कहो जूतुं मत बोलरे, जेहवा रूपे बो तेहवो तोलरे ॥ ११॥ नाति जातिनो कुल मत लोपोरे, साचुं कहेतां रखे तुमे कोपोरे ॥ | मनोवेग कहे तुमे दो मोटारे, न्याय पुराणमां अमे ढुं खोटारे ॥१२॥ नीच तणां श्रादयाँ श्रमे कामरे, केम पुराय विवादे हामरे ॥ बहु बलवंता संगाते वादरे, कीजे तो वधे विखवादरे॥ १३ ॥श्रमे एकाकी परदेशी लोकरे, जे बोर्बु ते सर्वे थाए फोकरे॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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