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________________ नाठो जग मांही तेहरे ॥ सु० ॥ १६ ॥ लोक तणां तव रांधणां रहीयां, घर हाटे ||५|| अंधारां वहीयारे ॥ सु० ॥ काचो कोरो खाए लोक, पेटपीडे करी पाडे पोकरे ॥ सु० ॥ १७ ॥ सोनार लोहार पोकज पाडे, अगनि विना केम घाट घाडेरे ॥ सु॥ कम करे जगन जानी जाग, नहीं जाप विना को लागरे ॥ सु० ॥ १७ ॥ जाप शाविना देव थयाने घेला, इंज आगे पोकारे गया वेहेलारे ॥ सु०॥ सुरपति चिंता उपनी जाम, पवनदेव पूब्यो तेणे तामरे ॥ सु॥रए ॥ वायु वदे सांजल मेघवान, अगनि जोयो में सघले गमरे ॥ सु० ॥ एक जायगा तेह तणी वारु, जोश्ने कहेशुं बीहंति' वारुरे ॥ सु॥२०॥ ढाल पंदरमी खंग बीजानी, श्रागे कहेशुं वात त्रीजानीरे ॥ सु० ॥रंगविजयनो शिष्य एम बोले, नेमविजय नवि वात खोलेरे॥सु॥ । उहा. . पवने तव सहु नोतर्या, सुर नर किन्नर देव ॥जमने मांड्यां बेसणां, त्रण जणांनां | हेव ॥१॥ जम मन मांहे चमकीयो, वायु कवण ए काम॥ एकेको आसन सहु जणी, थमने केम त्रण ठाम ॥२॥ वायु कहे साचु कडं, उदर मांहीं तुम तेह ॥ सहुना १ पत्तो.
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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