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________________ धर्मपरी खंझ ५ ॥५६॥ संदेह नांजशे, प्रत्यक्ष थाशे जेह ॥ ३ ॥ जमने काढी उबकी, बायाने ततकाल पवन कहे नानी सुणो, मित्र अमारो बाल ॥४॥ बायाए वमी करी, विश्वदेव कहाड्यो ताम ॥ जम जूठो कोप्यो घणुं, अग्निनो टावं गम ॥ ५॥ विश्वानल नागे तदा, कृतांत पुंठे धाय ॥ पग पांगलो अगनिदेव ते, पमतो नागे जाय ॥ ६ ॥ तमोवम नाग बेहु जणा, व्यनिचारी मार आज ॥ पेठो जश् पाषाणमां, विश्वानल तिण ताज ॥७॥ ढाल सोलमी. सुण बेनी पीयुमो परदेशी-ए देशी. __ अगनि अलोप न दीसे जाम, जम पाडो आव्यो गमरे ॥ घरे ले गयो बायाने सार, नोगवे कृतांत अपाररे ॥ सांजलजो साजन जे कडं वात ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ मनोवेग कहे सानलो साच, वामव बोट्युं जे वाचरे ॥ वेद पुराणे ने ए वात, साचुं] जू कहो चातरे ॥ सांग ॥२॥ हिजवर बोक्या सांजल वाच, वचन तुमारो साच- रे ॥ शास्त्र अमारे बोल्यु एम, अमे लोप्युं जाये केमरे ॥ सां० ॥३॥ मनोवेग बोल्यो वली ताम, सांजलो ब्राह्मण गुणधामरे ॥ जमदेव जाणे सहुए जगमां, अतीत ॥५६॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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