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________________ 94* जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन की घाटी में मिले हैं। इससे ज्ञात होता है, कि इस नदी के किनारे मानव 400000 से 200000 वर्ष पूर्व भी रहता था। उत्खनन के आधार पर ही हमें पता लगाता है, कि लगभग 26000 ई.पू. ही गंगाघाटी में भौतिक संस्कृति थी। डॉ. बी.बी. लाल ने हस्तिनापुर के उत्खनन के आधार पर बताया है, कि महाभारत में वर्णित कौरव-पांडव युद्ध लगभग 900 ई.पू. में हुआ। बलुचिस्तान, उत्तर पश्चिमी भारत, गंगा-यमुना, दोआब तथा दक्षिण भारत में लोहे के अवशेष से एक महत्त्वपूर्ण तकनीकी जानकारी होती है। मथुरा, उदयगिरी, खण्डगिरी, कौशांबी, विदिशा, उज्जयिनी आदि स्थानों से अनेक प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। उनसे पता चलता है, कि ई. सन् के पहले उत्तर भारत में कई जगह जैन स्तूपों, मन्दिरों तथा तीर्थंकर प्रतिमाओं का निर्माण हो चुका था। उत्तर भारत में जैन कला के जितने प्राचीन केन्द्र थे, उनमें मथुरा का स्थान अग्रगण्य है। सोलह शताब्दियों से ऊपर के दीर्घकाल में मथुरा में जैन धर्म का विकास होता रहा। यहाँ के चित्तीदार लाल बलुए पत्थर की बनी हुई कई हजार जैन कलाकृतियाँ अब तक मथुरा और उसके आसपास के जिलों से प्राप्त हो चुकी है। मथुरा में एक प्राचीन खंभे पर कंकाली देवी की मूर्ति है और उसके पास ही एक टीला है, अतः उसे कंकाली टीला कहते हैं। मथुरा ने नैऋत्य कोण में आगरा और गोवर्धन जाने वाली सड़क के बीच 500 फुट लंबा व 350 फुट चौड़ा विस्तार वाला यह कंकाली टीला है। उसके अन्दर से दो ढाई हजार वर्ष से भी प्राचीन कई वस्तुएँ निकली हैं। जिनमें प्राचीन जैन मन्दिरों के भग्न खण्डहर, जैसे-स्तूप, तोरण, आयागपट्ट, खंभे, खंभे पर की पट्टियाँ, छत्र और मूर्तियाँ आदि मिले हैं। उन ध्वंसाऽवशेष खण्डहरों में कोई 110 प्राचीन शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं। उन शिलालेखों से यह तो स्पष्ट हो गया, कि महात्मा बुद्ध से दो सौ वर्ष पूर्व भी मथुरा में जैन मन्दिर विद्यमान थे और समय-समय पर अनेक जैनाचार्य वहाँ आकर धर्मोपदेश देते रहे हैं। जैनों में स्त्रियाँ भी दीक्षा लेकर भ्रमण करती थीं। सर्वप्रथम 1871 ई. में जनरल कनिंघम ने कंकाली टीले पर उत्खनन का कार्य करवाया और कई प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए। उसके पश्चात् 1875 ई. में मथुरा के कलेक्टर ग्राऊज साहब ने वहाँ खुदाई करवाई, तब भी कई प्राचीन नमूने मिले। बाद में 1887 ई. से 1896 ई. तक डॉक्टर ब्रजेश और डॉ. फूहरर ने कंकाली टीले पर कई बार खुदाई करवायी और फलस्वरूप अनेक प्राचीन प्रमाण एकत्र किए, जिन्हें लखनऊ के अजायबघर में रखा गया। डॉ. फूहरर ने अपने शोध पर एक रिपोर्ट तैयार की, जिसका सारांश कुछ इस प्रकार है - 1. श्वेताम्बर जैनों की 10 मूर्तियाँ निकली हैं। उन पर शिलालेख भी अंकित हैं। उनमें 4 शिलालेख तो ऐसे हैं, कि जिनसे जैनों के इतिहास पर अच्छा
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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