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________________ 62 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन में प्रवेश किया। माघ शुक्ला चतुर्थी के दिन अहिर्बुघ्न योग में महारानी ने पुत्ररत्न को जन्म दिया। देवों ने जन्माभिषेक के पश्चात् बालक का नामकरण विमल वाहन किया । " विमलनाथ जी के शरीर की कांति सोने जैसी थी, काया साठ धनुष ऊँची थी और व्रत पर्याय पन्द्रह लाख वर्ष थी । उनकी आयु साठ लाख वर्ष थी । वासुपूज्य जी और विमलनाथ जी के निर्वाण का अन्तरकाल तीस सागरोपम का था ।" 1 कुमार विमलवाहन के पन्द्रह लाख वर्ष की आयु होने पर उनका राज्याभिषेक किया गया। 30 लाख वर्ष पर्यंत वे भौतिक राजसी सुखों का भोग करते रहे। एक दिन समस्त दिशाएँ, भूमि, वृक्ष और पर्वत बर्फ से ढक रहे थे, ऐसी हेमन्त ऋतु में बर्फ की शोभा को तत्क्षण विलीन होते देखा और उन्हें वैराग्य हो गया । उसी समय उन्हें अपने पूर्वभव का भी ज्ञान हो गया। तब विमलनाथ जी देवदत्ता नामकी पालकी पर सवार होकर सहेतुक वन में गए और दो दिन के उपवास का नियम लेकर दिक्षित हो गए । विमलनाथ जी माघ शुक्ला चतुर्थी के दिन सायंकाल के समय उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षित हुए। उसी दिन उन्हें मन:पर्यय ज्ञान हो गया । " केवलज्ञान : भगवान विमलनाथ जी 3 वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में विचरण करते रहे। तब एक दिन वे अपने दीक्षा वन में पहुँचे, वहाँ उन्होंने दो दिन के उपवास का नियम लेकर जम्बू (जामुन) वृक्ष के नीचे ध्यान किया । फलस्वरूप माघ शुक्ला षष्ठी के दिन सायंकाल के समय उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में भगवान विमलनाथ को अतिशय केवलज्ञान की प्राप्ति हुई ।* 258 धर्म-परिवार : भगवान विमलनाथ जी के मन्दर आदि 55 गणधर थे । ग्यारह पूर्वधारी थे, 36530 शिक्षक थे, 4800 अवधिज्ञानी थे, 5500 केवलज्ञानी थे, 9000 विक्रिया ऋद्धि धारक थे, 5500 मनः पर्यय ज्ञानी थे, 3600 वादी थे। इस प्रकार 68000 मुनि उनकी आज्ञा में विचरते थे । पद्मा आदि 1 लाख 3 हजार आर्यिकाएं थी, 1 लाख श्रावक तथा 4 लाख श्राविकाएँ उनके अनुयायी थे । असंख्यात देव - देवियों एवं संख्यात तिर्यंचों से सेवित थे। प्रभु विमलनाथ जी के शासन काल में ही स्वयंभू नामक वासुदेव और भद्र बलदेव हुए थे । " निर्वाण : भगवान विमलनाथ जी के चार कल्याणक काम्पिल्य नगर में हुए । तथापि पाँचवां कल्याणक सम्मेदशिखर पर हुआ । जीवन का एक माह शेष रहने पर प्रभु ने सम्मेदशिखर पर जाकर योग-निरोध किया। तब आषाढ़ कृष्णा अष्टमी के दिन प्रातः काल उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में क्रिया प्रतिपाति शुक्लध्यान धारण करके 8600 मुनियों के साथ मोक्षगामी हुए । यह दिन विद्वानों में कालाष्टमी के नाम से भी प्रचलित है। 60 14. अनन्तनाथ जी : जम्बूद्वीप के दक्षिण भरत क्षेत्र की अयोध्या नगरी में इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगौत्री
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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