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________________ 60 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन दिया। तभी उनका नाम श्रेयांसकुमार रखा गया ।243 श्रेयांसकुमार जी का वर्ण सोने जैसा तथा काया अस्सी धनुष की थी। उनकी आयु चौरासी लाख वर्ष की और व्रत पर्याय इक्कीस लाख वर्ष की थी । शीतलनाथजी और श्रेयांसनाथजी के निर्वाण का अन्तरकाल छत्तीस हजार छियासठ लाख तथा सौ सागरोपम कम एक करोड़ सागरोपम का था । ** 244 श्रेयांसकुमार इक्कीस लाख वर्ष की आयु के हुए तब उनका विवाह करके उनके पिता ने उन्हें राज्य भार सौंप दिया। उसके पश्चात उन्होंने बयालीस लाख वर्ष तक राज्य किया। तब एक दिन वसन्त ऋतु परिवर्तन के निमित्त से उन्हें वैराग्य हुआ और वे अपने पुत्र को राज्यभार सौंपकर दीक्षा के लिए उद्यत हुए । विमलप्रभा नामकी पालकी में बैठकर मनोहर नामक उद्यान में गए। वहाँ उन्होंने बेले का नियम लेकर फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन प्रातःकाल के समय श्रवण नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ संयम धारण किया। उसी समय उन्हें चौथा मनः पर्यय ज्ञान उत्पन्न हो गया। 245 केवल ज्ञान : दीक्षा के पश्चात् श्रेयांसनाथ जी ने छद्मस्थ अवस्था में दो वर्ष व्यतीत किए। तब एक दिन मनोहर उद्यान में ही दो दिन के उपवास का नियम लेकर तुम्बुर वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ हुए। वहीं पर उन्हें माघ कृष्णा अमावस्या के दिन श्रवण नक्षत्र में सायंकाल के समय केवलज्ञान हुआ । 246 धर्म परिवार : भगवान श्रेयांसनाथ के कुन्थु आदि सत्तर गणधर थे । तेरह सौ पूर्व धारियों से सहित थे, अड़तालीस हजार दो सौ शिक्षक थे, छह हजार अवधिज्ञानी थे, छह हजार पाँच सौ केवलज्ञानी थे, ग्यारह हजार विक्रिया ऋद्धि के धारक थे, छह हजार मनः पर्यय ज्ञानी थे और पांच हजार वादी थे। इस प्रकार सब मिलाकर चौरसी हजार मुनि उनकी आज्ञा में विचरते थे । धारणा आदि एक लाख बीस हजार आर्यिकाएँ थीं। दो लाख श्रावक तथा चार लाख श्राविकाएँ उनके अनुयायी थे । असंख्यात देवदेवियाँ और संख्यात तिर्यंच उनकी सेवा में रहते थे। 247 निर्वाण : श्रेयांसनाथ जी अनेक वर्षों तक धर्म प्रचार करते हुए आर्यावर्त में विचरते रहे । अन्त में सम्मेदशिखर जाकर एक माह तक योग निरोध करके एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण किया । श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के दिन सायंकाल के समय घनिष्ठा नक्षत्र में विद्यमान कर्मों की निर्जरा करके भगवान श्रेयांसनाथ जी सिद्धबुद्ध-मुक्त हो गए। 248 तीर्थंकर श्रेयांसनाथ जी के काल में ही प्रथम वासुदेव त्रीपृष्ठ हुए थे । 12. वासुपूज्य जी : जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के चम्पानगर में इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगौत्री राजा वसुपूज्य का राज्य था। उनकी महारानी जयावती थी । एकदा आषाढ़ कृष्ण षष्ठी के दिन
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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