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________________ उपसंहार *487 का घटना काल माना जाता है। राम की कथा के प्रसंग में इनका विवरण भी मिलता है। 21वें तीर्थंकर नमि मिथिला के राजा थे। इन्हें हिन्दू पुराणों में भी राजा जनक का पूर्वज स्वीकार किया गया है। नमि की अनासक्त वृत्ति मिथिला में जनक में पायी जाती है। इनके वंश एवं प्रदेश को ‘विदेह' कहे जाने का सम्भवतः यही कारण है। बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ का इतिहास कृष्ण-बलराम के कथा प्रसंगों से जुड़ा हुआ है। नेमिनाथ की संसार से विरक्ति में जीवमात्र के प्रति करूणा प्रधान कारण रही है। जिनशासन में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने प्राणीमात्र से मैत्रीभाव बढ़ाया. मांसाहार व पशुवध का घोर विरोध किया, और उस समय से सब बन्द भी करवा दिया। 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की परम्परा तो भगवान महावीर के समय भी विद्यमान थी। पार्श्वनाथ की जीवन साधना ने बुद्ध आदि को बहुत प्रभावित किया। पार्श्वनाथ ने भी अहिंसा का बहुत प्रसार किया, जो तत्कालीन समाज की परम आवश्यकता थी। उन्होंने समाज में पाखण्ड के प्रति फैले अन्धविश्वास को खण्डित किया। ईसा पूर्व छठी शताब्दी की धार्मिक क्रान्ति की पृष्ठभूमि भगवान पार्श्वनाथ के समय से ही स्पष्ट होने लगी थी, भगवान महावीर ने जिसका पूर्ण विकास किया। मानव संस्कृति जो पतन के गर्त में जा रही थी, महावीर ने एक बार फिर उसके पुनरुत्थान में सहायता की। समाज को पुनः दुष्प्रवृत्तियों से मुक्त किया। इस प्रकार जैन धर्म-दर्शन मानव संस्कृति का प्रवर्तक ही नहीं है, वरन इसके लम्बे इतिहास में अनेक बार इसी जैन-दर्शन ने पुनः-पुनः सहारा देकर प्रशस्त मार्ग द्वारा इस मानव संस्कृति का पुनरुत्थान किया है। 2. भारतीय संस्कृति व दर्शन में जैन दर्शन की भूमिका: संस्कृति वस्तुतः सार्वदेशिक व सार्वभौमिक होती है। लेकिन उसमें किन्ही विशेष गुण-धर्मों या देशप्रदेशों की अपेक्षा से उसका उस रूप में मुख्यता से कथन होने लगता है। देश भेद की दृष्टि से मानव अनेक हैं और उनकी अनेक संस्कृतियाँ हैं। लेकिन यह विविधता विभाजक नहीं, अपितु समन्वय, सहकार, सहयोग और सह अस्तित्व का सुन्दर गुलदस्ता है। जैसे गंगा के अनेक नाम हैं, पर नामों की विभिन्नता से गंगाजल में अन्तर नहीं आता। वह आदि से अंत तक अपने निर्मल प्रवाह रूप से एक है। यही बात संस्कृति के लिए भी है, नामकरण उसकी गतिशीलता के अवरोधक नहीं है, वरन् उसकी श्री वृद्धि करने वाले ही हैं। भारतीय संस्कृति के उच्चरण से भारत देश की संस्कृति का ज्ञान होता है। लेकिन भारतीय संस्कृति का शाब्दिक अर्थ होता है- प्रकाश के मार्ग का अनुसरण करने से प्राप्त होने वाली संस्कार सम्पन्नता। भा- प्रकाश और प्रकाश के मार्ग का 'रत'- दत्तचित्त होकर अनुसरण करना, भारत का वाच्य है। उससे प्राप्त होने वाली संस्कार सम्पन्नता का नाम भारतीय संस्कृति है। इस संस्कार-सम्पन्नता प्राप्ति के तीन
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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